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प्राक्कथन
वज्जालग्गं एक प्राचीन ग्रन्थ है। इसकी रचना का समय पूर्णरूप से निश्चित नहीं है, पर, कुछ विद्वानों के मतानुसार यह 1300 वर्ष से भी पुराना ग्रन्थ है । इस ग्रन्थ में धर्म, अर्थ तथा काम के विभिन्न पहलुओं पर गाथायें प्रस्तुत की गई हैं। यह प्राचीन भारतीय परम्परा के अनुसार मानव जीवन को एकांगी के स्थान पर सर्वांगीण मानता है। इसलिए धर्म के साथ अर्थ और काम का भी इसमें विवेचन किया गया है। मानवीय जीवन में विविधता है और उसे एक पक्षीय नहीं बनाया जा सकता।
प्रस्तुत पुस्तक में जीवन मूल्यों से सम्बन्धित 100 गाथाओं का चयन किया गया है । यह बहुत ही उपयोगी और रुचिकर है। भारतीय परम्परा में इस बात पर बहुत ही बल दिया गया है कि व्यक्ति एक प्रामाणिक जीवन जीये। जैन दर्शन और साहित्य में भी यह विचार महत्वपूर्ण है । तत्त्वार्थ सूत्र में सम्यग् ज्ञान और सम्यक दर्शन के अतिरिक्त सम्यक चारित्र की भी आवश्यकता बतायी गयी है। तीनों के सम्मिश्रण से ही मुक्ति सम्भव है। हर युग में कई दार्शनिक व ज्ञानी पुरुष हुए हैं। पर, केवल वे ही मान्य और प्रभावी हुए, जिन्होंने अपने ज्ञान और दर्शन को जीवन में उतारा और चरित्र की अमिट छाप छोड़ी।
आज का जीवन भौतिकता प्रधान है । मानव से अधिक मशीन महत्वपूर्ण है। धर्म की तुलना में यह काम और अर्थ प्रधान युग है । ऐसी भौतिक चकाचौंध में भी पूजनीय तो वे ही लोग हैं जो शुद्ध, समर्पित, सेवाभावी, साधनारत जीवन जीते हैं और सिद्धान्तों में अडिग हैं। अर्थ वालों में आस्था के स्थान पर ईर्ष्या ही प्राप्त होती है। केवल विद्वत्ता का प्रभाव क्षणिक ही हो सकता है।
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