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कारण किसी को स्नेह सहित भेट नहीं दे पाते हैं (90)। वाक्पतिराज का कथन है कि सज्जन व्यक्ति उदारता-वश यदि किसी की प्रशंसा करता है तो वह भी झूठ बोलने और चापलूसी करने के कारण दुष्टता को प्राप्त कर लेता है 195)। सज्जनों की कितनी ही निन्दा की जाय उससे उनका कुछ भी नहीं बिगड़ता है, बल्कि वह निन्दा एक न एक दिन निन्दा करने वाले दुष्टों पर ही घटित हो जाती हैं (5)। वाक्पतिराज कहते हैं कि दुष्ट का यह स्वभाव होता हैं कि वे नीच-संगति में ही प्रसन्न होते हैं यद्यपि सज्जन उनके निकट होते हैं। यह निश्चय ही स्वेच्छाचारिता है कि रत्नों के सुलभ होने पर भी दुष्टों द्वारा कांच ग्रहण किया जाता है (58)। . शासक और अधिकारी वर्ग : .
. वापतिराज लोक में यह देखते प्रतीत होते हैं कि शासक मोर मधिकारी वर्ग का व्यवहार मूल्यों से रहित होता है। वे अपने स्वार्थों को ध्यान में रखकर ही कार्य करते हैं। वाक्पतिराज का कथन है कि यद्यपि राजा धन तथा स्त्रियों के रहस्य की चौकसी से सदैव शंका करने वाले होते हैं, तथापि यह माश्चर्य है कि दुष्ट व्यक्ति ही सदैव उनके निकट रहते है (18)। वाकपतिराज को यह विश्वास नहीं होता है कि गणी व्यक्ति कभी राजानों के समीप रहेंगे। यदि कोई गुणी व्यक्ति राजामों के घरों में पहुंचते हैं तो फिर वे सामान्य व्यक्ति ही होंगे (28)। सद्गुरणों के कारण ही राजामों के द्वारा सज्जनों से घृणा की जाती है । प्रतः वाक्पतिराज.. की सलाह है कि सज्जनों को राजानों से प्रादर प्राप्त करने की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए (29)। "
वाकपतिराज का मत है कि सर्वोच्च अधिकारी प्रपनी मिथ्या प्रशं. सामों के द्वारा दुष्टों से ठगे जाते हैं। वे यह समझने लगते है कि उनमें प्रशंसित गुण विद्यमान है (14)। अधिकारी उत्तम बुद्धि वालों तथा चरित्र वालों को मिलने के लिए तो प्रामत्रित करते हैं पर उनका यह विचारना होता है कि उनके स्वयं के लाभ ही सर्वोपरि होते हैं (26) । अधिकारी अच्छे लोगो (xii)
वाक्पतिरावक
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