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। स्वभावी व्यक्ति गुणों को धन के लिए बेच देते हैं, पर उच्च स्वभावी व्यक्ति
धन से गुणों को लाना चाहते हैं (21) । बाक्पतिराज इस बात से दुःखी प्रतीत होते है कि लोक में यह देखने में माता है कि गुणी व्यक्ति वैभव पर पान व्यक्तियों को तथा वैभवशाली व्यक्ति गुणों में महान व्यक्तियों को कुछ भी नहीं समझते हैं। वे मापस में एक दूसरे को छोटा करने में लगे रहते हैं (44)। इससे हानि होती है मोर अच्छे कार्य नहीं हो पाते हैं।
सम्बन-सत्पुरुष :
वाकपतिराज के अनुसार सज्जनों को दो दुःख रहते हैं। एक प्रोर यह दुःख रहता है कि वे सत्पुरुषों के काल में उत्पन्न नहीं हुए तथा दूसरी मोर यह दुख रहता है कि वे दुष्ट पुरुषों के काल में उत्पन्न हुए (24)। जब कहीं सत्पुरुषों की बात को मूढ़ लोग नहीं समझते हैं, तो वे उस स्थान को छोड़कर अन्य स्थान को चले जाते हैं (23)। यह उच्च कोटि का व्यवहार है कि सज्जन व्यक्ति अपने प्रति किए गए अपराध के कारण भी अपराधी के प्रति निम्न स्तर की क्रियानों में प्रवृत्ति नहीं करते हैं (36)। सत्पुरुषों का गजामों से भी कोई प्रयोजन नहीं होता है । चूकि सत्पुरुष प्रासक्ति-रहित होते हैं, इसलिए विधाता के साथ भी संघर्ष करने के लिए घरूपी कटिबंध से बँधे हुए रहते हैं (46)। सत्पुरुष वैभव का त्याग करते हैं, मरण का स्वागत करते हैं । इसका प्रभाव यह होता है कि यमराज भी उनके जीवन को बढ़ा देता है (52) । सत्पुरुषों का यश अवश्य फैलता है, किन्तु धीरे-धीरे सत्पुरुषों के विषय में गुणों के उद्धार कम हो जाते हैं । सदैव किसी का यश नहीं चलता है (76)। सत्पुरुष प्रसाधारण व्यक्ति होते हैं, उनमें कोई छोटा दोष रहे तो ही अच्छा है, वरना उनके साथ कोई सम्बन्ध स्थापित नहीं किया जा सकेगा (81) । सत्पुरुष किसी के एक गुण की भी प्रशंसा करते है (86) । सत्पुरुष इस बात से ही धीरज धरते हैं कि उनके द्वारा किसी को तो संतोष होता ही है (89) । सज्जनों को उस समय दुःख होता है जब वे निर्धनता के नोकानुभूति
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