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________________ कुछ चुनी हुई वाक्य-मणियाँ समरणसुत्तं-चयनिका 1. पंच गुरवे झायहि 66 =पाँच गुरुत्रों (प्राध्यात्मिक स्तंभों) को ध्यानो। ___2. तत्कालिय-सपरसमय-सुदधारा आइरिया मम पसीवंतु 9/9 = सम कालीन स्व-पर सिद्धान्त को धारण करने वाले प्राचार्य मेरे लिए मंगलप्रद हों। 3. पंचक्खरनिप्पण्णो ओंकारो 12/12 = पांच अक्षरों से बना हुमा प्रोम् (होता है)। 4. ससमय-परसमयविऊ पवयणसारं परिकहेउं जुत्तो 14/23 = स्व-सिद्धांत तथा पर-सिद्धांत का ज्ञाता (व्यक्ति) (ही) प्रवचन के सार को कहने के लिए योग्य (होता है। 5. जं इच्छसि प्रप्पणतो, तं परस्स इच्छ 15/24 = स्वयं से (स्वयं के लिए) जो कुछ चाहते हो, उसको (ही) (तुम) दूसरे के लिए चाहो । 6. संघो सम्वेसि अम्मापितिसमाणो होइ 16/27 = (श्रमण) संघ सब प्राणियों के लिए माता-पिता के समान होता है। 7. जस्स गुरुम्मि न भत्ती, गुरुकुलवासेण किं तस्स? 17/29 = जिसको गुरु में भक्ति नहीं हैं, उसका गुरु के सान्निध्य में रहने से क्या लाभ ? 8. कामभोगा अणत्थाण खाणी 18/46 = काम भोग अनर्थों की खान (होते हैं)। । 9. इंदिअविसएसु सुहं नरिथ 19/47 = इन्द्रिय-विषयों में सुख नहीं (है)। 10. महो सुबडो कवडगंठी 22/51 = पाश्चर्य ! कपट की गांठ दृढ़ बांधी 11. अहो गुल्लो संसारो 26/55 = खेद ! संसार ही दुःख है। . 64 ] [ समणसुत्तं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004166
Book TitleSamansuttam Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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