SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राभार ... भगवान् महावीर के 25 सौवें निर्वाणं-पर्व के अवसर पर समग्र जैन समाज सम्मत 'समंणसुत्तं' नामक ग्रंथ की निष्पत्ति हुई। इस 'ग्रंथ की निष्पत्ति के पीछे भगवान् महावीर की अव्यक्त और सन्त विनोबाजी की व्यक्त पावन प्रेरणा रही है।" समरणसुत्तं-चयनिका के लिए यही ग्रन्थ आधार बना है। अतः इसके प्रकाशक सर्व-सेवा-संघ प्रकाशन, वाराणसी का आभार व्यक्त करता हूँ। इसका प्रकाशन 24 अप्रेल; 1975 को हुआ था। . . . : __ डॉ. नेमिचन्द जैन द्वारा सम्पादित तीर्थंकर के (सितम्बर, 1981 से दिसम्बर 1982 तक) अंकों में समणसुत्तं चयनिका के प्रथम संस्करण का प्रकाशन हुआ है। तीर्थंकर के मार्च 1983 के अंक में 'समरणसुत्तं चयनिका : कुछ चुनी हुई वाक्य-मणियाँ' प्रकाशित की गईं। अतः चयनिका और वाक्य-मरिणयों के प्रकाशन के लिए 'तीर्थकर' के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता हूं। .... तीर्थकर में प्रकाशित 'समणसुत्तं-चयनिका' के हिन्दी अनुवाद और व्याकरणिक विश्लेषण को डॉ. के.प्रार. चन्द्र, (अध्यक्ष, पालि एवं प्राकृत विभाग, गुजरात विश्वविद्यालय, अहमदाबाद) ने पढ़कर कई महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए। उन्होंने इस पुस्तक का प्राक्कथन लिखने की स्वीकृति प्रदान की। अतः मैं उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हूं। . श्री एस. एन. जोशी, (सहायक प्रोफेसर, अंग्रेजी-विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर) ने इसके अंग्रेजी अनुवाद को पढ़कर कई सुझाव दिए। अतः मैं उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ। .. मेरे विद्यार्थी डॉ. श्यामराव व्यास, सहायक प्रोफेसर, दर्शनwit ] [ समणसुतं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004166
Book TitleSamansuttam Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy