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श्रात्मोत्पन्न, विषयातीत, अनुपम, अनन्त तथा प्रविच्छिन्न होता है (142) । उसे हम समतावान, द्वन्द्वातीत, केवलज्ञानी, आत्मानुभवी आदि नामों से संबोधित कर सकते हैं ।
समणसुत्तं चयनिका के उपर्युक्तं विवेचन से स्पष्ट है कि समरणसुत्तं में जीवन के मूल्यात्मक पक्ष की सूक्ष्म ( अभिव्यक्ति हुई है । इसी विशेषता से प्रभावित होकर यह चयन ( सुमरणसुत्तं चयनिका) पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते हुए हर्ष का अनुभव हो रहा है । गाथाओं के हिन्दी अनुवाद को मूलानुगामी बनाने का प्रयास किया गया है। यह दृष्टि रही है कि अनुवाद पढ़ने से ही शब्दों की विभक्तियों एवं . उनके अर्थ समझ में आ जाएँ । अनुवाद को प्रवाहमय बनाने की भी इच्छा रही है । कहाँ तक सफलता मिली है, इसको तो पाठक ही बता सकेंगे । अनुवाद के अतिरिक्त गाथाओं का व्याकरणिक विश्लेषण भी प्रस्तुत किया गया है । इस विश्लेषण में जिन संकेतों का प्रयोग किया गया है, उनको संकेत सूची में देख कर समझा जा सकता है । यह आशा की जाती है कि प्राकृत को व्यवस्थित रूप से सीखने में सहायता मिलेगी तथा व्याकरण के विभिन्न नियम सहज में ही सीखे जा सकेंगे। यह सर्व विदित है कि किसी भी भाषा को सीखने के लिए व्याकरण का ज्ञान अत्यावश्यक है । प्रस्तुत गाथाओं एवं उनके व्याकरणिक विश्लेषण से व्याकरण के साथ-साथ शब्दों के प्रयोग भी सीखने में मदद मिलेगी । शब्दों की व्याकरण और उनका अर्थपूर्ण प्रयोग दोनों ही भाषा सीखने के आधार होते हैं । अनुवाद एवं व्याकरणिक विश्लेषण जैसा भी बन पाया है, पाठकों के समक्ष है । पाठकों के सुझाव मेरे लिए बहुत ही काम के होंगे ।
चयनिका ]
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