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________________ को छोड़ता है, वह ममता वाली वस्तु को छोड़ता है; जिसके लिए कोई ममता वाली वस्तु नहीं है। वह ही ऐसा ज्ञानी है जिसके द्वारा अध्यात्म-पथ जाना गया है (74)। सर्व परिग्रह से रहित व्यक्ति सदा शान्त और प्रसन्नचित्त होता है (75)। जिसके जीवन में आसक्ति नहीं होती है, उसके द्वारा दुःख नष्ट कर दिया गया है, जिसके जीवन में तृष्णा नहीं होती है, उसके द्वारा आसक्ति नष्ट कर दी गई है। जिसके जीवन में लोभ नहीं होता है, उसके द्वारा तृष्णा नष्ट की गई है। जिसके पास कुछ भी वस्तुएँ नहीं हैं, उसके द्वारा लोभ नष्ट किया गया है (56)। जिनके लिए कुछ भी अपना नहीं है, वे सुखपूर्वक रहते हैं। राजा जनक ने कहा था कि जलाई जाती हुई मिथिला में उसका कुछ भी नहीं जलाया जाता है (54)। सच यह है कि वस्तु-जगत् से विरक्त मनुष्य दुःख रहित होता है, संसार के मध्य में विद्यमान भी वह दुःख से मलिन नहीं किया जाता है, जैसे कमलिनी का पत्ता जल से मलिन नहीं किया जाता है (39)। सभी मनुष्यों का जो कुछ भी मानसिक दुःख है, वह इच्छाओं में अत्यासक्ति से उत्पन्न होता है, किन्तु वीतराग उसका नाश कर देता है (36)। इसलिए जिस कारण से अनासक्ति उत्पन्न होती है, वह पूर्ण सावधानी से पालन किया जाना चाहिए। श्रेष्ठ अनासक्त व्यक्ति कर्म-बन्धन से छुटकारा पा जाता है। आसक्त व्यक्ति कर्म-बन्धन का अन्त करने वाला नहीं होता है (37)। ___ जीवन में सद्गुणों का विकास भी साधना के लिए अनिवार्य है। सचमुच ज्ञानी होने का यही सार है कि ज्ञानी किसी की भी हिंसा नहीं करता है (77)। सब ही जीव जीने की इच्छा करते हैं, मरने की नहीं, इसलिए संयत व्यक्ति पीड़ादायक प्राणवध का परित्याग करते हैं (78) । जैसे जगत् में मेरु पर्वत से ऊँचा कुछ नहीं है, और आकाश से विस्तृत भी कुछ नहीं है, वैसे ही अहिंसा के समान जगत् xvi ] [ समणसुतं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004166
Book TitleSamansuttam Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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