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(बालस्स) 3/1 |स' (म)-साथ । सुरु (सुक्स) 1/11 = नहीं। बिन (विज्म) 1/1 | सह' (च)=ताप । निंदवा' (निदा) 3/1 पनि । र (वरम) 111 मार (ममत्त) 3/1 | मारने [को+(मारंमेण)] न (प) = नहीं प्रारमेण (मारंभ) 3/1 । खातुबा (दयालुवा) 1/11
1. समं, मह प्रादि के योग में तृतीया विभक्ति होती है । 92 जागरह (जागर) विधि 2/2 अक । नरा (नर) 8/21 जिचं (म)=
निरंतर । बागरमानस्स (जागर) वकृ 6/1 । बढ़ते (वड्ढ) व 3/1 मक । बुद्धी (बुद्धि) 1/1 | बो (ज) 1/1 स । सुवतिः (सुव) व 3/1 मक । ण (अ)= नहीं। सो (स) 1/1 स । धनो (धन) 1/1 वि ।
बग्मति (जग्य) व 3/1 मक । सबा (म)=सदा। 93 विवत्ती (विवत्ति) 1/1 । अविनोमस्स (प्रविणीम) 6/1 वि । संपत्ती
(संपत्ति) 1/1। विभीमस्स (विणीम) 6/1 वि । य (प्र)=ौर । बस्सेयं [(जस्स)+ (एयं)] । जस्स (ज) 6/1 स एवं (एय) 1/1 सवि । हो (म)= दोनों प्रकार से । नायं (नाय) 1/1 भूक भनि । सिव (सिक्खा) 2/11 से (त) 1/1 सवि । अभिगच्या (अभिगन्छ) 43/1 सक।
1. कभी कभी षष्ठी विभक्ति का प्रयोग तृतीया विभक्ति के स्थान पर
. होता है (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-134) 94 मह (अ) प्रच्छा तो । पंचहि (पंच) 3/2 वि । लेहि (ठाण) 3/2।
जेहि (ज) 3/2 सवि । सिता (सिक्खा) 1/1। न (अ) = नहीं। लन्नई (लब्भइ) व कर्म 3/1 सक अनि । थम्भा (पम्भ) 5/1 । ___1. छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु '1' को 'ई' किया गया है। 2. किसी कार्य का कारण व्यक्त करने वाली (स्त्रीलिंग भिन्न) संज्ञा
में तृतीया ता पंचमी विषक्ति का प्रयोग होता है।
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[ समखसुतं
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