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कोहा! (कोह) 5/1 । पमाएणं! (पमान) 3/1 । रोगेगानस्सएग [(रोगेण)+(मालस्सएण)] रोगेण (रोग) 3/1 आलस्सएण (पालस्स) स्वार्थिक 'म' प्रत्यय 3/1 । य (म)= तथा। 1. किसी कार्य का कारण व्यक्त करने वाली (स्त्रीलिंग भिन्न) संज्ञा
में तृतीया या पंचमी विभक्ति का प्रयोग होता है। 95 अह (अ) = अच्छा तो। अहिं (अट्ठ) 3/2 । गणेहि (ठाण) 3/2।
सिक्खासीले [(सिक्खा)-(सील) 1/1 वि] । त्ति (अ)= शब्दस्वरूप द्योतक । बुच्चाई (बुच्चई) व कर्म 3/1 सक अनि । प्रहस्सिरे (म-हस्सिर) 1/1 वि । सया (प्र)=सदा । दंते (दंत) भूक 1/1 अनि । न (म) = नहीं । य (प्र) = तथा। मम्ममुवाहरे [(मम्म)+(उदाहरे)] मम्म
(मम्म) 2/1 । उदाहरे (उदाहर) व 3/1 सक। 16 नासीले [(न)+(असीले)] |'न (प्र) = नहीं प्रसीले (असील)1/1 वि।
विसीले (विसील) 1/1 वि । सिया (अ)= है। अइलोलुए [(अइ) वि(लोलुम) 1/1 वि प्रकोहणे (प्रकोहण) 1/1 वि । सच्चरए [(सच्च)(रम) भूक 1/1 मनि] । - 1. समास के अन्त में अर्थ होता है । प्रवण, सम्पन्न आदि । ___ 2. आधी या पूरी गाथा के अन्त में पाने वाली 'इ' को 'ई' कर दिया
जाता है (क्रियापदों में) (पिशल: प्रा. भा. व्या. पृष्ठ, 138)। 97 नागमेग्गचित्तो [(नाणं) + (एगग्गचित्तो)] नाणं (नाण) 2/1
एगग्गचित्तो (एगग्गचित्त) 1/1 वि । य (भ) = मोर । ठिमओ (ठिम) भूकृ 1/1 अनि । गवई (ठव प्रेरक-ठावय)प्रेरक अनि व 3/1 सक। परं (पर) 2/1 वि । सुगालि (सुय) 2/2 1 4 (अ) =ौर । महिम्बित्ता
1. छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'ई' को 'ई' किया गया है।
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