________________
88 जागरिया (जागरिया) 1/1 | धम्मीणं (धम्मि) 6/2 वि । महम्मीणं
(अहम्मि) 6/2 चि। च (अ)= और । सुत्तया (सुत्तया) 1/11 सेया (सेया) 1/1 वि । बच्छाहिवमगिपीए [(वच्छ)+ (प्रहिव)+ (भगिणीए)] [(वच्छ)-(प्रहिव)-(भगिणी) 4/1] । अहिंसु (प्र-कह) भू. 3/1 सक । जिनो (जिण) 1/1 । अयंतीए (जयंती)4/11
1. पिशल : प्राकृत भाषामों का व्याकरण, पृष्ठ 753 2. 'कह' आदि के योग में (जिससे कुछ कहा जाय उसमें) चतुर्थी
विभक्ति होती है। 89 सुत्त सु' (सुत्त) 7/2 वि । यावी (प्र.) =तथा । परिबुद्धजीवी [(पडि
बुद्ध) भूक अनि-(जीवि) 1/1 वि] । न (अ) = नहीं । वीससे (वीसस) विधि 3/1 सक । पणिए (पण्डिन) 1/1 । मासुपरणे (आसुपण्ण) 1/1 वि। घोरा (घोर) 1/2 वि । मुहत्ता (मुहुत्त) 1/2 | अबलं (प्रबल) 1/1 वि। सरीरं (सरीर) 1/1। भारंट-पक्खी [(भारंड)-(पक्खि) 1/1] ।व (प्र) = की तरह । चरेऽप्पमतो [(चरे)+ (अप्पमत्तो)] चरे (चर) विधि 3/1 सक अप्पमत्तो (अप्पमत्त) 1/1 वि । 1. 'विश्वास' अर्थ को बतलाने वाले शब्दों के योग में प्रायः (जिस
पर विश्वास किया जाता है उसमें सप्तमी विभक्ति का प्रयोग
होता है। 90 न (अ)= नहीं । कम्मुना (कम्म) 3/1 । कम्म (कम्म) मूल शब्द 2/11 . बर्वेति (खव) व 3/2 सक । बाला (बाल) 1/2 वि । प्रकम्मुना (मकम्म) 3/11 धीरा (धीर) 1/2 वि। मेधावियो (मेधावि) 1/2 कि । लोभमया [(लोभ)-(मय.) 5/1। वतीता (वतीत) भूक 1/2 अनि । संतोसिरणो (संतोसि) 1/2 । नो (अ) = नहीं। परेंति (पकर)
व 3/2 सक । पावं (पाव) 2/1 .:91 नालस्सेण [(ना)+(पालस्सेण)] ना (प्र)=नहीं। मालस्सेण'
1. समं सह प्रादि के योग में तृतीय विभक्ति होती है।
चयनिका ].
[ 127
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org