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________________ मानववाद वास्तविकता बन सकता है। अतः यह गुणात्मक नमस्कार मानववाद की. .अओर एक कदम है । गुणात्मक नमस्कार मनुष्य को गुणानुरागी बना सकता है। जातिवाद, प्रान्तवाद, राष्ट्रवाद, वंशवाद, व्यक्तिवाद आदि संकुचितताएँ गुणानुरागी होने से समाप्त हो सकती है। पंच नमस्कार की इस महिमा के कारण ही यह कहा गया है कि ये पाँच आध्यात्मिक स्तम्भअरहंत, सिद्ध, . प्राचार्य, उपाध्याय और साधु-कल्याणकारी होते हैं, चारों गतियों में शरण देने वाले होते हैं, तथा आराधना के लिए श्रेष्ठ होते हैं (6) । अरहंत आत्मानुभवी हैं, जीवन-मुक्त हैं एवं संसारी प्राणियों के मार्ग-दर्शक हैं (7)। सिद्ध अशरीरी हैं, विदेहमुक्त हैं तथा केवल आत्मानुभव में हो लीन हैं (8) । प्राचार्य पांच महाव्रतों-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह को धारण किए हुए हैं तथा सभी विविध दर्शनों को समझने वाले होते हैं (9)। उपाध्याय अज्ञानरूपी अन्धकार का नाश करने के लिए नैतिक आध्यात्मिक मूल्यों का शिक्षण प्रदान करते हैं (10) । साधु शीलवान्, विनयवान् और वैराग्यवान होते हैं (11)। ओंकार इन्हीं पांचों का संक्षिप्त रूप है (12)। यहां यह प्रश्न पूछा जा सकता है कि यद्यपि एक दृष्टि से सिद्ध विकास-क्रम में अरहंतों से श्रेष्ठ है तो भी परहंतों को ही सर्वप्रथम नमस्कार क्यों किया गया है ? इसके उत्तर में यह कहा जा सकता है कि अरहंत परम आत्मा का अनुभव करने के पश्चात् भी लोक-कल्याण में संलग्न रहते हैं और सिद्ध अशरीरी होने के कारण लोक-कल्याण नहीं कर सकते हैं। चूंकि मरदंत लोकोपकारी होते हैं, इसलिए सर्वप्रथम नमस्कार के योग्य हैं। समाज को दिशा देने वाले परहंत होते हैं, मूल्यात्मक संस्कृति के वे निर्माता होते हैं, इसलिए उनको सर्वप्रथम नमन किया गया है। यद्यपि अरहत और सिद्ध आत्मानुभव की दृष्टि से एक ही हैं, फिर भी चयनिका ] Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004166
Book TitleSamansuttam Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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