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________________ समणसुत्तं का अनुप्रेक्षासूत्र और संलेखनासूत्र जीवन और मरण के प्रति समुचित दृष्टिकोण को अपनाने के लिए मनुष्य को प्रेरित करता है । आत्म-जागृति की भूमिका में ही अनासक्तता पनपती है। समणसुत्तं का सम्यक्त्वसूत्र आत्म-जागृति के महत्व और उससे उत्पन्न लक्षणों पर प्रकाश डालता है। इस तरह से जागरूकतापूर्वक ज्ञान और प्राचरण ही व्यक्ति में मूल्यात्मक चेतना को गहरी बनाते हैं और ऐसे ही व्यक्तियों के कारण समाज में मूल्यों के प्रति आस्था उत्पन्न होती है। समणसुत्तं की इन 756 गाथाओं में से ही हमने 170 गाथाओं का चयन 'समणसुत्तं चयनिका' शीर्षक के अन्तर्गत किया है। इस चयन का उद्देश्य पाठकों के सामने समरणसुत्तं की उन कुछ गाथाओं को प्रस्तुत करना है जो मनुष्यों में सामाजिक, नैतिक तथा आध्यात्मिक मूल्यों की चेतना को सघन बना सकें। गुणात्मक नमस्कार :.. . समणसुत्तं में पांच आध्यात्मिक स्तम्भों-अरहंत, सिद्ध, प्राचार्य, उपाध्याय, साधु का स्मरण किया गया है। उनके प्रति ही नमन किया गया है। यह नमन अवैयक्तिक है, गुणात्मक है। यह वास्तव में गुणों का स्मरण है और उनके प्रति ही नमन है । गुणों के लिए नमस्कार हमारे में गुणात्मक अनुभूति को सघन करता है। यद्यपि गुण व्यक्ति के सहारे ही होते हैं, फिर भी यहाँ व्यक्ति को नमस्कार न करके गुणों को ही नमस्कार किया गया है । व्यक्ति की महानता गुणों के कारण ही होती है, अतः गुणों को नमस्कार करना उचित ही है। अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु के गुणों की साधना सर्वोपरि साधना कही जासकती है। ऐसी साधना व्यक्ति के जीवन में सभी दोषों का अन्त कर देती है। इसलिए ऐसा गुणात्मक नमस्कार ही सर्वप्रथम किए जाने . योग्य होता है (1,2)। यदि मनुष्य गुणात्मक दृष्टि अपनाले, तो iv ] [ समणसुत्तं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004166
Book TitleSamansuttam Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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