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________________ संलग्न हो जाता है । वह मूल्यों के लिये ही जीता है और समाज में उनकी अनुभूति बढ़े इसके लिए अपना जीवन समर्पित कर देता है । यह मनुष्य की चेतना का एक दूसरा आयाम है । समरसुतं में चेतना के इस दूसरे आयाम की सबल अभिव्यक्ति हुई है। नैतिक और प्राध्यात्मिक मूल्य ही समाज के लिये अहिंसात्मक प्राधार - शिला प्रस्तुत करते हैं। समणसुत्तं ऐसे ही सार्वभौमिक मूल्यों का आगार है । इसमें 756 गाथाएँ हैं जो जीवन के विभिन्न पक्षों को उजागर करके मनुष्य को परम शान्ति के मार्ग पर चलने के लिये प्रेरित करती हैं। जैसे गीता और धम्मपद सार्वभौमिक मूल्यों को जीवन में प्रतिष्ठित करने के लिए सक्षम हैं, उसी प्रकार (सार्वभौमिक मूल्यों को जीवन से प्रतिष्ठित करने के लिये ) समणसुतं सक्षम है । मनुष्य के ज्ञानात्मक, भावात्मक और क्रियात्मक विकास के लिए समरणसुत्तं का मार्ग-दर्शन जीवन की गहराइयों को अनुभव करने के निमित्त महत्त्वपूर्ण है। केवल बुद्धि का विकास व्यक्तित्व की विषमताओं का निराकरण नहीं कर सकता । बुद्धि के विकास के साथ भावनात्मक विकास ही मनुष्य में सद्-प्रवृत्तियों को जन्म देता है । इनके फलस्वरूप ही समाज समता के प्रकाश से आलोकित हो सकता है । इस तरह से ज्ञान के साथ आचररण मनुष्य को उसके व्यक्तिगत एवं सामाजिक उत्थान के लिये समर्थ बनाता है । समरणसुत्तं के चारों खण्डों में ज्ञान और आचरण ( चारित्र) के प्रायः सभी बिन्दु समाविष्ट हैं । एक सबल · तत्त्वदर्शन पर आधारित प्रमेकान्तवाद, नयवाद और स्याद्वाद जहाँ वस्तु को अपनी विविधताओं में समझने के लिये बौद्धिक यंत्र हैं । वहाँ श्रावकाचार और श्रमणाचार आत्मा की सजग पृष्ठभूमि में मनुष्य. - को जीवन की उच्चतानों का साक्षात्कार कराने के लिए समर्थ हैं । - अनासक्त भाव जीने की एक कला है । इसी से जीवन के संघर्षो मौर मरण की घड़ियों में मनुष्य मानसिक शान्ति बनाए रख सकता है । wafter ] Jain Education International For Personal & Private Use Only [ ãi www.jainelibrary.org
SR No.004166
Book TitleSamansuttam Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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