________________
सपर समय- सुदधारा [ (त) सवि - (बकालिय ) वि- (स) वि- (पर) वि( समय ) - ( सुद ) - (धार) 1 / 2 वि ] । गागागुणगणमरिया [ ( गागा ) वि - ( गुण) - ( गण ) - (भर) भू.कृ. 1 / 2] । आइरिया ( इंरिय) 1 / 2 | मम (ह) 4 / 1स । पसीवंतु ( पसीद) विधि 3 / 2 अक ।
1. समास के प्रारम्भ में विशेषरण के ( संस्कृत हिन्दी कोश )
10 अण्णाणघोरतिमिरे [ ( अण्णाण ) वि- ( घोर) वि- ( तिमिर ) 7 / 1 ] + दुरंत तीरहि [ ( दुरंत) वि - (तीर) 7 / 1] | हिडमारगाणं ( हिंड) वकृ 4 / 2 | भवियाणुज्जोययरा [ ( भवियाण) + (उज्जोययरा ) ] भवियाग (भवियं) 4/2 वि उज्जोययरा ( उज्जोययर ) 1/2 वि । उवज्झाया (वाय) 1 / 2 | वरमद [ (वर) वि - ( मदि ) 2 / 1] । देतु (दा) विधि 3/2 तक 1
रूप में प्रयोग होता है ।
1/2
11 थिरधरियसीलमाला [ (थिर 2 ) - ( धरिय) भू. कृ. - ( सील ) - माला) 1 / 2 ] । ववगयराया [ ( ववगय) वि - (राय) 1 / 2 ) ] । जसोहपडिहत्या [(जस) + (ग्रह) + (परिहत्था ) ] [ (जस) - ( प्रोह ) - ( पडिहत्थ ) वि ।' बहुविभूसियंगा [ ( बहु) + (विरणय) + (भूसिय) + (अंगा ) ] वि - (विरणय ) - (भूसिय) भू. कृ. - ( अंग ) 1 / 2 ] । सुहाई ( सुह ) साहू (साहू) 1/2 पयच्छंतु (पयच्छ) विधि 3 / 2 तक । i
[
2 / 2 |
1. थिर (त्रिवि) = ढढ़तापूर्वक थिरं थिर. यहाँ अनुस्वार का लोप हुआ है।
106 ]
12 अरिहंता (अरिहंत ) 1/2
आयरिया मुणिणो
असरीरा ( सरीर ) 1 / 2 (प्रारय) 1 / 21 उवज्झाय ' ( उवज्झाय) मूलशब्द 1 / 2 ( मुणि) 1/2 पंचक्खर निप्पण्णी [ (पंच) + (अक्खर ) + (निप्पण्णो ) ] [(पंच) वि- ( प्रक्खर ) - निप्पण 2 ) भूकृ 1 / 1 श्रनि]। श्रोंकारी ( श्रोंकार) 1/11 पंच (पंच) 1/2 वि पर मिट्ठी ( परमिट्टी ) 1/2 ।
Jain Education International
( बहु )
For Personal & Private Use Only
[ समरणसुत्तं
www.jainelibrary.org