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च
71. संसारे गमो वि ससुत्तो जीवो न नस्सइ 128/248 = संसार में स्थित
भी नियम-युक्त व्यक्ति बर्बाद नहीं होता है। 72. जेण चित्त जिउमावि, तं गाणं जिणसासणे 129/252 = जिससे चित्त
संयमित किया जाता है, वह जिन-शासन में ज्ञान है। - ॐ 73. जेण मित्ती पभावेजज, तं गाणं जिणसासणे 130/253 = जिसके द्वारा
मित्रता उत्पन्न की जाती है, वह जिनशासन में ज्ञान है। . .. 74. चरणविप्पहीणस्स सुयमहीयं किं काहिह 135/266=चरित्रहीन
(व्यक्ति) के द्वारा पढ़ा हुमा श्रुत क्या (प्रयोजन) सिद्ध करेगा? . 75. जो चरित्त हीणो, कि तस्स बहुएण सुवेण 136/267 = जो चरित्रहीन
है, उसके बहुत श्रुत-ज्ञान से भी क्या लाभ ? ... _____76. जो चरित्तसंपुग्णो थोवम्मि सिक्सिवे बहुसुदं जिनइ 136/267=ो
चरित्रयुक्त है (वह) अल्प शक्षित होने पर (भी) विद्वान् को मात कर
देता है। 77. अभंतरसोधीए बाहिरसोधी वि होरि 144/281 = प्रांतरिक शुद्धि से
बाह्य शुद्धि भी होती है। 78. जाव बरा न पीलेड, ताव धम्म समायरे 152/295 = जब तक बुढ़ापा
नहीं सताता है, तब तक धर्म का प्राचरण कर लेना चाहिए। . 79. जाव वाही न बाई, ताव धम्म समायरे 152/295 = जब तक रोग ... नहीं बढ़ता है, तब तक धर्म का आचरण कर लेना चाहिए। 80.. पाविरिया न हायंति, ताव धम्म समायरे 152/295 = जब तक . इन्द्रियां भीण नहीं होती हैं, तब तक धर्म का प्राचरण कर लेना
चाहिए। 81. जयणा उधम्मजणणी 156/394= निश्चय ही जागरूकता अध्यात्म
की माता है। .. 82. जयणा धम्मस्य पालगी चेव 156/394=निश्चय ही जागरूकता
अध्यात्म की रक्षा करनी वाली है।
चयनिका ]
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