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83. पारणेण झाणसिज्झी 158/478 = ज्ञान से ध्यान की सिद्धि
(होती है)। 84. झाणोवगचित्तो ईसा-विसाय-सोगा-इएहि न वहिज्जइ 161/502= - ध्यान को प्राप्त चित्त ईर्ष्या, निराशा, अफसोस आदि द्वारा परेशान
नहीं किया जाता है। 85. धम्मो सरणमुत्तमं 163/525 = अध्यात्म उत्तम शरण (है)। 86. भुवणेक्कगुरुणो णमो अणेगंतवायस्स 166/660 = मनुष्यों के केवल
मात्र गुरु, अनेकान्तवाद को नमस्कार । 87. गाणाधम्मजुदं पि अत्यं 168/724 = निश्चय ही वस्तु अनेक धर्मों ..
(गुणों) से युक्त (होती है)। 88. सगपरसमएहि वयणविवादं वज्जिज्जा 170/735 = स्व-पर मत से
वचन-कलह को (तुम) दूर हटायो ।
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[ समणसुत्तं
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