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________________ 44. सम्वे जीवा मरिविडं न इयंति 78/148 = कोई भी जीव मरने की __इच्छा नहीं करते हैं। 45. जह ते न पिनं दुवं एमेव सम्धजीवाणं न पिनं दुक्खं 79/150 = जैसे तुम्हारे (अपने) लिए दुःख प्रिय नहीं है इसी प्रकार (दूसरे) सब जीवों के लिए दुःख प्रिय नहीं है। ' 46. अत्तोवम्मेण कुणसु वयं 79/150 = अपने से तुलना के द्वारा (जीवों के प्रति) सहानुभूति रक्खो। 47. जीववहो अप्पवहो होइ 80/15 1 = जीव का घात. खुद का घात होता है। 48. जीवदया अप्पणो क्या होइ 80/151 = जीव के लिए दया खुद के लिए दया होती है। 49. प्रभवसिएण बंधो 83/154 = (हिंसा के) विचार से ही कर्म बंध होता है। 50. अहिंसासमं धम्म नत्यि 85/158 = अहिंसा के समान धर्म नहीं है। 51. सुवंतारणं पुरीसाण अत्था लोगसारत्या सीतंति 87/161 = सोते हुए पुरुषों के परमार्थ और लोक में सर्वोत्तम प्रयोजन (दोनों ही) नष्ट हो जाते हैं। 52. धम्मीणं जागरिया सेया 88/162 = धर्मात्माओं का जागरण (सक्रिय . होना) सर्वोत्तम (होता है)। . 53. अहम्मीणं सुत्तया सेया 88/162 =प्रधर्मात्माओं का सोना (निष्क्रिय होना) सर्वोत्तम (होता है)। 54. नालस्सेण समं सुक्खं 91/167= पालस्य के साथ सुख नहीं . (रहता है)। 55. न विज्जा. सह निद्दया 91/167 = निद्रा के साथ विद्या (संभव) नहीं (होती है)। 56. न वेरगं ममत्तणं 91/167 = ममत्व के साथ वैराग्य (घटित) नहीं . (होता है)।... चयनिका ] [ 67 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004166
Book TitleSamansuttam Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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