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जैनन्यायपञ्चाशती अत्रेदं विशेषरूपेण ज्ञातव्यं यत् प्रत्येकं पदार्थः स्वयमेव सामान्यविशेषात्मको भवति। यथा 'मनुष्य' इत्युक्ते मनुष्यमात्रस्य बोधो भवति। सामान्यरूपेणाऽयं वस्तुनो बोधः। 'अयं भारतीयो वैदेशिकः' 'गौरोऽयं मनुष्यः कृष्णो वेत्युक्ते' सति मनुष्यविशेषस्य बोधः। अनेन प्रकारेण शब्दः स्वयमेव सामान्यविशेषयोः ज्ञानं कारयति। यतो हि सामान्यविशेषौ पदार्थस्य धर्मी स्तः। पदार्थस्य इदं रूपं ज्ञातुं वैशेषिकदर्शने सामान्यविशेषौ स्वतन्त्रपदार्थों इति स्वीकृतमस्ति। किन्तु नेदं न्यायसंगतम्।
कारिकाकारः मतमिदं निराकुर्वन् अनयोः स्वतन्त्रपदार्थत्वं न स्वीकुरुते। इमौ न स्वतन्त्रपदार्थों किन्तु पदार्थस्य गुणौ स्तः। शब्दश्रवणमात्रेणैव सामान्यविशेषयोः बोधो भवति। तस्मादिमौ पदार्थगुणावेव न तु स्वतन्त्रपदार्थौ । ___ आचार्यहेमचन्द्रेणापि कथितं यत् पदार्थाः स्वयमेव अनुवृत्तिव्यतिवृत्तिभाजो भवन्ति । तान् बोधयितुं भावान्तरस्य आवश्यकता नैव भवति। निष्कर्षरूपेणेदमेव वक्तुं शक्यते यत् पदार्थाः स्वत एव सामान्यविशेषात्मका भवन्ति।
प्रत्येक दर्शन का उद्देश्य है-पदार्थों का विश्लेषण करना। प्रत्येक दर्शन में पदार्थों की मान्यता भिन्न-भिन्न है। इस सन्दर्भ में वैशेषिकदर्शन द्रव्य, गुण, कर्म
और सामान्य आदि सात पदार्थों को मानता है। उनमें सामान्य और विशेष-ये दो पदार्थ भी हैं। सामान्य का लक्षण वहां इस प्रकार किया गया है-'नित्यमेकमनेकानुगतं सामान्यम्।' इसका तात्पर्य है कि जो नित्य है, एक है और जो अनेक में समवायसम्बन्ध से रहता है वह सामान्य कहा जाता है। जैसे-'यह गाय है' ऐसा कहने पर यहां गोत्वविशिष्ट सभी गायों का बोध हो जाता है। क्योंकि यह गोत्व नित्य है, एक है
और सभी गायों में समवायसम्बन्ध से रहता है। समवाय नित्यसम्बन्ध का वाचक है। इसलिए गोत्व गाय के साथ सदैव रहता है। यह वस्तु का सामान्य रूप है। जब 'पीली गाय', 'काली गाय' ऐसा कहा जाता है तब उस विशेषण से युक्त गोशब्द गायविशेष का बोधक होता है। इसमें गाय की विशेषता प्रकट होती है।
१. स्वतोऽनुवृत्तिव्यतिवृत्तिभाजो भावान भावान्तरनेयरूपाः।
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