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जैनन्यायपञ्चाशती ज्ञात होता है कि घड़ा पृथ्वी-मिट्टी से पृथक् भिन्न ही है। यदि घड़ा पृथ्वी से अभिन्न होता तो पृथ्वी तो पहले भी थी तब घड़ा उत्पन्न क्यों नहीं हुआ? इससे यह जाना जाता है कि पृथ्वी भिन्न है और घड़ा भिन्न है। वास्तव में तो उपादानकारण के होने पर भी जब तक कुम्हार का व्यापार और निर्माण में प्रयुक्त होने वाले उपकरण नहीं होते तब तक घड़ा कैसे निर्मित हो सकता है। उपादान की सत्ता होने मात्र से ही कार्य की निष्पत्ति नहीं होती। कार्य और कारण की भिन्नता और अभिन्नता तो उपयोग को लेकर ही कही जा सकती है। घड़े का उपयोग जल आदि का ग्रहण करने के लिए है और पृथ्वी का उपयोग आधार देने के लिए होता है। मिट्टी के पिण्ड से घड़ा निर्मित हुआ, इसलिए घड़ा पृथ्वी से अभिन्न है, पहले घड़ा नहीं था, अब घड़ा है, इसलिए घड़ा पृथ्वी से भिन्न है। इस विवेचन से घट का भिन्नत्व-अभिन्नत्व सिद्ध होता है।
यहां यह भी कहा जा सकता है कि घट ध्रौव्यरूप से पृथिवी-मिट्टी से अभिन्न है और पर्यायरूप से उससे भिन्न भी है।
(३७) सम्प्रति न्यायवैशेषिकाभिमतं सामान्यविशेषयोः पृथक् पदथित्वं निराकुर्वन् श्लोकयति
अब न्यायवैशेषिक से अभिमत सामान्य-विशेष का पृथक् पदार्थता का निराकरण करते हुए कह रहे हैं
सामान्यश्च विशेषश्च न स्वतन्त्रौ घुभावपि। वस्तुनो हि गुणौ किन्तु सर्वस्मिन्नपि वर्तनात्॥३७॥ सामान्य और विशेष स्वतन्त्र पदार्थ नहीं है, किन्तु दोनों वस्तु के ही गुण हैं। क्योंकि सभी पदार्थों में इनकी विद्यमानता है। न्यायप्रकाशिका
___ प्रत्येकं दर्शनस्योद्देश्यमस्ति पदार्थानां विश्लेषणम्। प्रत्येकं दर्शने पदार्थानां मान्यता भिन्ना भिन्नाऽस्ति। अस्मिन् सन्दर्भ वैशेषिकदर्शनं
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