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________________ 96 जैनन्यायपञ्चाशती मानने वालों का पक्ष ही सुदृढ़ होता है क्योंकि इतस्ततः अपसरण से तम का द्रव्यत्व होना पुष्ट है क्योंकि अपसरण किसी द्रव्य से ही होता है न कि निर्जीव पदार्थ में होता है। ___तम में नीलत्व की प्रतीति भ्रम है। यह कहना भी ठीक नहीं है क्योंकि सदृश वस्तु में ही तत् सदृश का भ्रम होता है जैसे रज्जु में सर्प का भ्रम होता हैअतस्मिंस्तबुद्धि' इस प्रकार की स्थिति यहां नही है। इस प्रकार यह बात स्पष्ट होती है कि न्यायदर्शन के अनुसार तम द्रव्य नहीं है किन्तु वह तेज का अभाव है। जैनदर्शन के अनुसार तो वह द्रव्य है। यहां यह कहना भी ठीक नहीं है कि विनिगमना विरह के कारण तेज को ही तम का अभाव क्यों न मान लिया जाए? किन्तु यह कथन इसलिए ठीक नहीं है क्योंकि तेज को अभाव रूप मानने पर उष्ण स्पर्श का अधिष्ठान कौन होगा? अभी तो तेज ही उष्ण स्पर्श का अधिष्ठान है। इस प्रकार उष्ण स्पर्श का आधार तम द्रव्य है यह बात सिद्ध होती है। (४४) दृष्टान्तद्वारा तमसो द्रव्यत्वं साधयतिदृष्टान्त के द्वारा तम का द्रव्यत्व सिद्ध कर रहे हैं यथा जलेऽनलाभावो जलाभावस्तथाऽनले। परस्परमभावेऽपि द्रव्यतापि द्वयोरपि॥४४॥ जैसे जल में अग्नि का अभाव है वैसे ही अग्नि में जल का अभाव है। परस्पर एक दूसरे का अभाव होने पर भी दोनों का द्रव्यत्व सिद्ध है। न्यायप्रकाशिका जलेऽग्निर्नास्ति। तस्मादग्निप्रतियोगिकाभावाधिकरणं जलमित्युच्यते। एवमेव अग्नावपि जलं नास्ति इति प्रतीत्या जलप्रतियोगिकाभावाधिकरणमग्निरिति भवति व्यवहारः। एकत्रापरस्याभावेऽपितयोर्द्रव्यत्वंसुस्थिरमेव। एकस्याभावेन कस्याप्यपरस्य मौलिकं स्वरूपंतत्र न तिष्ठतीति कथनमयुक्तमेव। १. विवेकचूडामणि, पृ. ४७, श्लो. १४०। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004165
Book TitleJain Nyaya Panchashati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishwanath Mishra, Rajendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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