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________________ जैनन्यायपञ्चाशती तमसि तेजसोऽभावोऽस्ति, तथापि तेजसोऽभावात् तमसो द्रव्यत्वं कथं न स्यात्? मा भवतु तमसि तेजः किन्तु तत्र तेजसोऽभावस्तमसः द्रव्यत्वं विहन्तुं कथमपि न समर्थः तस्मात् तमसो नीलरूपवत्वात् गुणाश्रयत्वं तथा चलनक्रियाश्रयत्वात् च क्रियाश्रयत्वमिति गुणक्रियाश्रयो द्रव्यमिति न्यायशास्त्रपरिभाषितं द्रव्यत्वंतमसः सुतरां सिद्धयति।जैनदर्शनानुसारंतुवर्णस्पर्शरसगन्धवन्तः पुद्गलाः इति परिभाषितं पौद्गलिकत्वं तमसि सिद्धमेव। तत्र वर्णस्पर्शी तु उद्भूतौ स्तः। रसगन्धौ तु अनुभूतौ स्तः। __ जल में अग्नि नहीं है, इसलिये अग्नि के अभाव का अधिकरण जल होता है। इसी प्रकार अग्नि में भी जल नहीं होता है। इस बोध से जल के अभाव का अधिकरण अग्नि होता है। एक जगह दूसरे का अभाव होने पर भी दोनों (जल और अग्नि) का द्रव्यत्व सुस्थिर होता ही है। एक का अभाव होने पर किसी दूसरे का मौलिक स्वरूप वहां नहीं रहता, यह कहना असंगत है। तम में तेज का अभाव है, तथापि तेज के अभाव में तम का द्रव्यत्व वहां रहता ही है। तम में तेज का अभाव रहता है तो रहे, किन्तु वहां तेज का अभाव तम के द्रव्यत्व को नष्ट नहीं कर सकता है। इसलिये तम के नीलरूप वाला होने के कारण वह गुण का आश्रय होता है तथा चलन क्रिया का आश्रय होने से वह क्रिया का आश्रय होता है। इस प्रकार "गुणक्रियाश्रयोद्रव्यमिति" इस प्रकार न्यायशास्त्र परिभाषित द्रव्यत्व तम में सुस्थिर ही रहता है। जैन दर्शनानुसार तम पौद्गलिक है। यह बात पूर्वकारिका में स्पष्ट कर दी गई है। तमसो द्रव्यत्वं पुष्टीकरोति तम के द्रव्यत्व को पुष्ट कर रहे हैं - कृष्णमित्युपलब्धित्वाद् रूपवत्वं प्रसिद्ध्यति। शीतत्वात् स्पर्शवत्वञ्च तयोः पुद्गललक्षणात्॥ ४५॥ अंधकार काला है, यह ज्ञान हो रहा है। इससे सिद्ध होता है कि वह रूपवान् है। वह शीतल है। इससे सिद्ध होता है कि वह स्पर्शवान् है। रूप और स्पर्श दोनों पुद्गल के लक्षण हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004165
Book TitleJain Nyaya Panchashati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishwanath Mishra, Rajendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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