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जैनन्यायपञ्चाशती
शब्द रूपवान् है और पौद्गलिक है वैसे ही ध्वनि भी रूपवान् और पौद्गलिक है। दोनों वर्णगन्धरस और स्पर्शयुक्त हैं और पुद्गलसमूह हैं। जैसे शब्द मूर्त है वैसे ध्वनि भी मूर्त है। दोनों में कोई भी असमानता दिखाई नहीं देती।
किसी भी प्रकार से आकाश में उत्पन्न क्षोभ वायुतरंगों के द्वारा आकृष्ट होकर कान तक जाकर सुनाई पड़े अथवा सुनाई पड़ सके वह शब्द कहलाता है। वह शब्द दो प्रकार का होता है-वर्णात्मक और ध्वन्यात्मक। स्वरयन्त्र से उत्पन्न शब्द वर्णात्मक होता है तथा ताललयमृदंगादि से उत्पन्न शब्द ध्वन्यात्मक। ___जैसे दूरभाष आदि यन्त्रों में शब्दों का ग्रहण और स्थिरीकरण किया जाता है वैसे ही ध्वनियों का भी यन्त्रों में ग्रहण और स्थिरीकरण किया जाता है। यन्त्र तो केवल मूर्त शब्दों अथवा मूर्त ध्वनियों को ही ग्रहण कर सकते हैं, अमूर्त द्रव्यों को नहीं। शब्द और ध्वनियां मूर्त होती है। इसलिए पुद्गल के सिवाय सब पदार्थ अमूर्त ही हैं। इससे यह स्पष्ट है कि शब्द और ध्वनि दोनों का ग्रहण और स्थिरीकरण समान होता है, यह प्रस्तुतकारिका का आशय है।
(४३) सम्प्रति तमसो द्रव्यत्वं साधयतिअब तम का द्रव्यत्व सिद्ध कर रहे हैं
- पुद्गलात्मतमो भासां नाभावो न्यायसंगतः। .. तत्त्वेऽपि द्रव्यतासुष्य मुष्यते केन दस्युना ॥ ४३॥ ___ अंधकार पौद्गलिक है। वह प्रकाश का अभाव है, ऐसा मानना न्यायसंगत नहीं है। ऐसा होने पर भी कौन चोर उसके द्रव्यत्व को चुरा सकता है। न्यायप्रकाशिका
तमः पौद्गलिकमस्ति। यत्र स्पर्श-रस-गन्ध-वर्णाः तिष्ठन्ति स एव पुद्गलः । तमसि नीलवर्णवत्ता कृष्णवर्णवत्ता वा स्पष्टं दृश्यते ।
१. स्पर्शरसगन्धवर्णवन्तः पुद्गलाः,
(तत्त्वार्थसूत्रम् ५/२३)।
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