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जैनन्यायपञ्चाशती अमूर्त नहीं है। शब्द तो पुद्गलसमूह है और वह स्पर्श, रस, गन्ध और वर्णयुक्त होता है। इस प्रकार लक्षणवाला पुद्गलसमूह शब्द मूर्त ही है, अमूर्त नहीं है। यदि शब्द आकाश का गुण होता तो अमूर्त होता । शब्द वैसा (अमूर्त) नहीं है, इसलिए वह आकाश का गुण नहीं है। यही इस कारिका का आशय है।
(४१) शब्दो न आकाशगुणः इत्येव द्रढयतिशब्द आकाश का गुण नहीं है, इसको पुष्ट कर रहे हैं
तद्गुणत्वादमूर्तत्वेश्रावणत्वं न तस्य युक्। ज्ञानस्यातीन्द्रियस्यैव विषयोऽमूर्तता यतः॥४१॥ आकाश अमूर्त है। यदि शब्द उसका गुण है तो वह भी अमूर्त होगा। अमूर्त श्रुति का विषय नहीं बन सकता, क्योंकि अमूर्त अतीन्द्रिय ज्ञान का ही विषय बनता है। न्यायप्रकाशिका
न्यायदर्शनाभिमतंशब्दस्याकाशगुणत्वं निराकुर्वन् कथयति कारिकाकारो यत् न आकाशगुणः शब्दः स च पौद्गलिकोऽस्ति। पौद्गलिकप्रचयत्वात् शब्दो मूर्तः। मूर्तः शब्दोऽमूर्तस्याकाशस्य गुणः कथं स्यात्? अमूर्तस्य गुणोऽमूर्त एव भवतीति आकाशगुणत्वाय शब्दस्य अमूर्तत्वं स्वीक्रियते चेत् तन्न युक्तम्। यतो हि यदि शब्दोऽमूर्त इति स्वीक्रियते तदा स श्रुतिविषयो न स्यात्। अस्यां स्थितौ श्रोत्रग्राह्यो गुणः शब्दः' इति शब्दस्य परिभाषा अर्थहीना भविष्यति। अत एव अमूर्त पदार्थाः इन्द्रियप्रत्यक्षविषया नैव भवन्ति, मूर्तास्तु इन्द्रियप्रत्यक्षविषयाः। तस्मात् मूर्तःशब्दो न आकाशगुण इत्येव पक्षः साधीयान्।
न्यायदर्शन का अभिमत है कि शब्द आकाश का गुण है। उसका निराकरण . करते हुए कारिकाकार कह रहे हैं कि शब्द आकाश का गुण नहीं है, वह पौद्गलिक है। पुद्गल समूह होने के कारण शब्द मूर्त है । मूर्त शब्द अमूर्त आकाश का गुण कैसे हो सकता है? अमूर्त का गुण अमूर्त ही होता है, इसलिए आकाश का गुण होने के लिए शब्द को अमूर्त स्वीकार किया जाए, वह ठीक नहीं है, क्योंकि यदि शब्द को
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