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135. यदि इसको भी करने के लिए (तू) सक्षम नहीं है, तो मेरी
भक्ति का अभ्यास करते हुए संयत और शान्त (होकर) सब कर्मों के फल में (आसक्ति का) त्याग कर ।
136. मेरे में केन्द्रित मन और बुद्धिवाला मेरा भक्त (जो) सब 137. प्राणियों के लिए ही सौहार्दपूर्ण (है), करुणायुक्त (है) और
(उनमें) घृणा करनेवाला नहीं (है); जो ममतारहित, अहंकाररहित, क्षमावान्, (और) सुख-दुःख में समता-युक्त (है) (तथा) (जो) प्रसन्न (है), सदा भक्ति करनेवाला (है), स्वसंयत (है) (और) दृढ़ संकल्पवाला (है), वह (भक्त) मेरे लिए प्रिय (है)।
138. जिससे (कोई भी) प्राणी भयभीत नहीं होता है, जो कामना,
ईर्ष्यायुक्त क्रोध, भय और चित्त की अस्थिरता से रहित है, वह मेरे लिए प्रिय है।
139. जो इच्छारहित (है), निष्पक्ष (है), सद्गुणी और कुशल (है),
दुःख से मुक्त (है) (और) (जो) समस्त हिंसा का त्यागी (है), वह मेरा आराधक मेरे लिए प्रिय (है)।
140. जो हर्षोन्मत्त नहीं होता है, (जो) घृणा नहीं करता है, . (जो) शोक नहीं करता है, (जो) चाहना नहीं करता है,
(और) (जो) शुभ-अशुभ (फल की आसक्ति) का त्यागी है, वह पाराधक मेरे लिए प्रिय (है)।
चयनिका
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