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में संतुलित है, जो शत्रु और मित्र के विषय में एक सा रहता है तथा जो सब प्रकार की हिंसा का त्यागी होता है, वह त्रिगुणों (सत्त्व, रज और तम) से परे (त्रिगुणातीत) कहा जाता है (156, 156)। - गीता-चयनिका के उपयुक्त विवेचन से स्पष्ट है कि गीता में जीवन के मूल्यात्मक पक्ष की सूक्ष्म अभिव्यक्ति हुई है। इसी विशेषता से प्रभावित होकर यह चयन पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते हुए हर्ष का अनुभव हो रहा है । श्लोकों का हिन्दी अनुवाद मूलानुगामी रहे, ऐसा प्रयास किया गया है । यह दृष्टि रही है कि अनुवाद पढ़ने से ही शब्दों की विभक्तियाँ एवं उनके अर्थ समझ में प्राजाएँ। अनुवाद को प्रवाहमय बनाने की भी इच्छा रही है। कहाँ तक सफलता मिली है, इसको तो पाठक ही बता सकेंगे। अनुवाद के अतिरिक्त श्लोकों का व्याकरणिक विश्लेषण भी प्रस्तुत किया गया है। इस विश्लेषण में जिन संकेतों का प्रयोग किया गया है, उनको संकेत सूची में देखकर समझा जा सकता है। यह भाशा की जाती है कि संस्कृत को व्यवस्थित रूप में सीखने में सहायता मिलेगी तथा व्याकरण के विभिन्न नियम सहज में ही सीखे जा सकेंगे। यह सर्व विदित है कि किसी भी भाषा को सीखने के लिए व्याकरण का ज्ञान अत्यावश्यक है। प्रस्तुत श्लोकों एवं उनके व्याकरणिक विश्लेषण से व्याकरण के साथ साथ शब्दों के प्रयोग भी सीखने में मदद मिलेगी। शब्दों की व्याकरण और उनका अर्थपूर्ण प्रयोग दोनों ही भाषा सीखने के माधार होते हैं। मनुवाद एवं व्याकरणिक विश्लेषण जैसा भी बन पाया है पाठकों के समक्ष है। पाठकों के सुझाव मेरे लिए बहुत ही काम के होंगे। चयनिका
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