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सब तरह से कर्तव्य निभाते हुए भी परमात्मा में टिका रहता है (88) । (iii) परमात्मा में केन्द्रित मन और बुद्धिवाला भक्त जो सब प्राणियों के लिए सौहार्दपूर्ण औौर करुरणायुक्त है, जो ममतारहित, अहंकाररहित क्षमावान और सुख-दुःख में समतायुक्त है, जो सदाभक्ति करनेवाला है, स्वसंयत और दृढ़ संकल्पवाला है, वह भक्त परमात्मा को प्रिय होता है (136, 137 ) | (iv) जिससे कोई भी प्राणी भयभीत नहीं होता है, और जो किसी भी प्राणी से भयभीत नहीं होता है, जो कामना, ईर्ष्यायुक्त क्रोध, भय और चित्त की स्थिरता से रहित है, वह भक्त परमात्मा के लिए प्रिय होता है (139) । (v) जो इच्छारहित है, निष्पक्ष है, सद्गुणी और कुशल है, दुःख से मुक्त है और जो समस्त हिंसा का त्यागी है, वह आराधक परमात्मा को प्रिय होता है (139) 1 (vi) जो हर्षोन्मत्त नहीं होता है, जो घृणा नहीं करता है, जो शोक नहीं करता है, जो चाहना नहीं करता है, और जो शुभ-अशुभ फल की श्रासक्ति का त्यागी है, वह आराधक परमात्मा को प्रिय होता है (140) । (vii) जो शीत भौर उष्ण स्पर्शो में तथा सुख और दुःख में समतायुक्त है, जो प्रासक्तिरहित है, जिसके लिए निन्दा भौर प्रशंसा समान हैं, जो घर-रहित और स्थिर बुद्धिवाला है, वह प्राराधक परमात्मा को प्रिय होता है (141, 142 ) ।
गुणातीत :
जो आत्मा में स्थित है, जिसके लिए सुख-दुःख समान हैं, जो अपनी निन्दा - प्रशंसा में समतायुक्त है, जिसके लिए इष्ट-अनिष्ट वस्तुएं समान श्रेणी की होती हैं, जो प्रशान्त है, जिसके लिए मिट्टी का ढेला, कीमती पत्थर मौर सोना समरूप हैं, जो मान-अपमान
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गीतां
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