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________________ परार्थ के प्रति जागृति, मनासक्ति के प्रति जागरूकता ही है । यह जागरूकता ही हमें कर्मयोगी बनने के लिए प्रेरित करती रहेगी। अतः अनासक्ति का अभ्यास व्यक्ति को मानसिक तनाव से थोड़ाबहुत तो मुक्त करता ही है । आसक्ति मानसिक तनाव की जनक है (56) । इससे व्यक्ति की बुद्धि में अस्थिरता पैदा होती है जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति अनासक्ति की साधना करने में असमर्थ रहता है (8)। साधना का मार्ग : अनासक्ति की प्राप्ति जीवन का आदर्श है। कर्म-फल में आसक्ति अज्ञान है । कर्म-फल में आसक्ति दुःख का कारण है। कर्मयोगी, भक्तयोगी तथा गुणातीत अनासक्ति का जीवन जीते हैं और लोक-कल्याण के लिए कर्म करते हैं। यह कहा गया है कि असंयमी व्यक्ति के द्वारा योग प्राप्त नहीं किया जा सकता है (91) । दुराचारी, दानवी भाव का अनुसरण करनेवाले, अज्ञानी व बुरे मनुष्य परमात्मा (अनासक्ति) का अनुभव नहीं कर सकते हैं (95) । बहुत खाने वाले व्यक्ति, बिल्कुल न खानेवाले व्यक्ति, बहुत निद्रालु व्यक्ति, और बहुत जागनेवाले व्यक्ति योग के लिए अयोग्य माने गये हैं (75.) । प्रयत्न करते हुए संयमी व्यक्ति के द्वारा ही योग प्राप्त किया जा सकता है (91)। साधना के लिए सबसे पहली आवश्यकता है शाश्वत में श्रद्धा अनश्वर आत्मा में श्रद्धा । अश्रद्धालु तथा संशय करने वाला व्यक्ति नष्ट हो जाता है (50) । प्रश्रद्धा करता हमा व्यक्ति जन्ममरण की परम्परा में फंसा रहता है (109)। सच यह है कि xvi ] . गीता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004162
Book TitleGeeta Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages178
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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