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________________ को सामान्य प्रबुद्ध व्यक्तियों के पठनार्थ निरन्तर प्रस्तुत कर रहे हैं। गीता-चयनिका गीता के अत्यन्त उत्कृष्ट एवं सारभूत श्लोकों का सानुवाद एवं व्याकरणिक विश्लेषण के साथ उपस्थापन है। प्रत्येक चयन चयनकार की दृष्टि का परिणाम होता है। महाभारत के आलोचनात्मक संस्करण को आधार बनाकर गीता का जो सर्वधर्म-दर्शन ग्राह्य स्वरूप है, उसे डॉ० सोगाणी ने अपने चयन का आधार बनाया है। गीता की सांप्रदायिक, शैव-वैष्णव मतावलम्बी व्याख्याएँ अनेक हैं, किन्तु साम्प्रदायिक परम्परा से अतीत रहकर उसका जो सर्वजन ग्राह्य स्वरूप है, वह आध्यात्मिक चेतना की विश्ववन्द्य आधार-शिला है। इस आध्यात्मिक चेतना तथा उसका सामाजिक-वैयक्तिक व्यवहार में उपयोग विरोधी कोटियाँ नहीं हैं। अत: व्यावहारिक तथा आत्मचिन्तन-प्रवण साधक दोनों ही इस चयनिका से लाभ उठा सकते हैं। अनुवाद, सरल, सुबोध तथा विश्वसनीय है, शास्त्रीय उलझाव अथवा साम्प्रदायिक अर्थबोध से यह आक्रान्त नहीं है। व्याकरणिक विश्लेषण उपयोगी है। मेरी यह इच्छा है कि डॉ० सोगाणी विश्रान्ति के क्षणों में स्वयं द्वारा तैयार की हुई चयनिकाओं के लिए भारत की क्लासिकी में रूचि रखनेवालों की कक्षाएँ लगायें। मुझे विश्वास है कि इस प्रकार जो व्यक्ति किसी कारण भारत की संस्कृति-संपदा से बेखबर रहे हैं और आज जिनमें उसे जाने की ललक पैदा हुई है वे उनके चयनिका ग्रन्थों से बहुत लाभान्वित होंगे और यह देश भी अपनी नैतिक, आध्यात्मिक (IX) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004162
Book TitleGeeta Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages178
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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