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संपदा को पहचानना प्रारम्भ कर सकेगा। इसी में व्यक्ति, समाज और राष्ट्र का अभ्युदय और निःश्रेयस सन्निहित है।
____ पाठक से भी मेरा एक निवेदन है। गीता के प्रत्येक श्लोक में तात्पर्य की अनन्तता निहित है। यह निस्सीमता प्रत्येक व्यक्ति अपना अर्थ खोजकर पा सकता है। गीता को नया अर्थ शास्त्रज्ञ पण्डित नहीं, अपितु सामान्य जन देता है। ऐसा अर्थ ही समाज को नया मार्ग तथा नया दिशा बोध प्रदान करता है। डॉ० सोगाणी के हम सभी संस्कृतज्ञ ऋणी हैं, जिन्होंने गीता की अमृतोपम वाणी को बुधजनहिताय, बहुजनसुखाय सुलभ बनाया है। उनका शेष जीवन समाज के लिए समर्पित इसी प्रकार की सारस्वत साधना में लगा रहे - यही हमारी प्रार्थना है।
डॉ० रामचन्द्र द्विवेदी प्रोफेसर, संस्कृत-विभाग राजस्थान विश्वविद्यालय,
जयपुर
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