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________________ है, मेरे प्रश्न का समाधान है, वही आपका भी हो। इसलिए हर व्यक्ति को अपनी गीता चुननी होती है। जैसे कि दर्शन के सम्प्रदाय अनेक हैं, पर हर व्यक्ति को अपना जीवन-दर्शन संघटित करना पड़ता है, उसी प्रकार जो गीता का अपना श्लोक और अपना अर्थ खोजेगा, उसे अवश्य मिलेगा। जीवन में हर्ष-विषाद सभी को होते हैं और हर व्यक्ति को अर्जुन की भाँति समसयाओं के चौराहे पर आकुल मन से अपनेअपने प्रश्न पूछने पड़ते हैं। दूसरों का सहारा लीजिए, बाहर मित्र खोजिये और शत्रु खोजिये या बनाइये - पर यह सब आपके जीवन को चौराहे से हटा कर रास्ता प्रशस्त कर देंगे, यह कहना कठिन है। और मुझे गीता का श्लोक बहुत अच्छा समाधान लगता है : उद्धरेदात्मनात्मानं नातमानमवसादयेत्। आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥ (६७) __ आप अपने सबसे बड़े मित्र और सबसे बड़े दुश्मन हैं - यह जानने के बाद शेष सब अच्छे लगते हैं और मन आत्मनिरीक्षण में लग जाता है, फिर विषाद के लिए गुंजाइश ही नहीं। उद्धरेदात्मनात्मानम् आज के कई रोगों की अच्छी औषधि लगती है। पर हर व्यक्ति को इसे अपना अर्थ देना होगा, स्वयं औषधी के रूप में अपनाना होगा, तभी इसकी सार्थकता पहचानी जायेगी। डॉ० कमलचन्द सोगाणी, प्रोफेसर, दर्शन-विभाग, सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर, विगत कई वर्षों से क्लासिक कृतियों के नवनीत (VIII) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004162
Book TitleGeeta Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages178
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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