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64. मभन्ते (नम्) 43/3सक ब्रह्मनिर्वाणमृषयः[(ब्रग्रनिर्वाणम्) + (ऋषयः)]
ब्रह्मनिर्वाणम् (ब्रह्मनिर्वाण)2/1. ऋषयः (ऋषि)1/3. क्षीरणकल्मषाः [[(क्षि+क्षीण) भूक-(कल्मष) 1/3] वि]. छिन्नदंषा यतात्मनः [(छिन्नद्वधाः) + (यतात्मानः)] छिन्नद्वं धाः [[(छिद-छिन्न) भूक(द्वंध) ।/3] वि] यतात्मानः [(यत) + (प्रात्मानः)] [[(यम्यत) भूक-(प्रात्मन्) 1/3] वि] सर्वभूतहिते [(सर्व) वि-(भूत)
(हित) 7/1] रताः (रम्+रत) भूक 1/3 । 65. यं संन्यासमिति [(यम्) + (संन्यासम्) + (इति)] यम् (यत्) 2/1
सवि. संन्यासम् (संन्यास) 2/1. इति (म)=शब्दस्वरूप द्योतक. प्राहुर्योगं तं विडि [(प्राहुः) + (योगम्)+ (तम्) + (विधि)] प्राहुः (प्र-बू) व 3/3 सक. योगम् (योग) 2/1. तम् (तत्)2/1. स विद्धि (विद्) प्राज्ञा 2/1 सक. पाण्डव (पाण्डव) 8/1. न (अ) नहीं घसंन्यस्तसंकल्पो योगी [(हि) + (प्रसंन्यस्तसंकल्पः) + (योगी)] हि (अ)=क्योंकि. असंन्यस्तसंकल्पः [(प्र-संनि-प्रस्+असंन्यस्त) भूक -(संकल्प) 1/1] योगी (योगिन्) 1/1. भवति (भू) व 3/1 अक
करचन [(कः + चन)] कः चन (किम् + चन') 1/1 स 66. यदा (म)=जब हि (म)=भी नेमियार्षेषु [(न) + (इन्द्रिय) +
(अर्थेषु)] न (अ)=नहीं. [(इन्द्रिय)-(अर्थ)7/3] न (म)= नहीं कर्मस्वनुषजते [(कर्मसु) + (मनुषज्जते)] कर्मसु (कर्मन्) 7/3. अनुषज्जते (अनु-सज्ज) व 3/1 अक. सर्वसंकल्पसंन्यासी [(सर्व)(संकल्प)-(संन्यासिन् 1/1 वि] योगारुडस्तदोच्यते [(योगास्टः) + (तदा) + (उच्यते)] योगास्टः (योगास्ट) 1/1. तदा (म)=तब. उच्यते (बू) व कर्म 3/1 सक.
1. 'किम्' के साथ प्रयुक्त होकर मनिश्वयात्मक पर्व को व्यक्त करता है।
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गीता
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