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भाव है। अशुभ भाव अशुभ इच्छाओं को जन्म देते है । अशुभ इच्छाएँ अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए चिन्तनात्मक बुद्धि का सहारा लेकर अशुभ प्रवृत्तियों को जन्म देती हैं जो कानून, नैतिकता और न्याय के विरुद्ध होती हैं। विभिन्न प्रकार के अशुभ भावों से विभिन्न प्रकार की अशुभ प्रवृत्तियां उत्पन्न होती हैं । जैसे दुष्टों के प्रति अनुराग से उनकी सहायता करना, दूसरों का अहंकारवश अपमान करना, दूसरों की ईर्ष्यावश हानि करना, काम-वासना में लिप्त होकर कुप्रवृत्तियों में फंसना प्रादि । कभी कभी शुभ इच्छाएँ अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए भी अशुभ प्रवृत्तियों का सहारा ले लेती हैं । जैसे, परीक्षा में पास होने के उद्देश्य से नकल करने की अशुभ प्रवृत्ति का सहारा लेना, गरीबों को आर्थिक सहायता देने के लिए चोरी का सहारा लेना, साहित्यिक क्षेत्र में प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए विभिन्न प्रकार से जालसाजी का प्रयोग करना, धन कमाने के लिए पाण्डुलिपियों को तथा कलापूर्ण मूर्तियों को बेचना आदि । किसी भी प्रकार से उत्पन्न अशुभ प्रवृत्ति का सुधारात्मक विरोध शुभ भाव है । अशुभ प्रवृत्तियों का विरोध संघर्ष की स्थिति. को जन्म देता है । यहां यह ध्यान रखना चाहिए कि सामान्यतया अशुभ प्रवृत्ति में लीन व्यक्ति बुद्धिमान होता है। किन्तु उसकी बुद्धि मायाचारी, शोषण, हत्या, काम-तृप्ति, अहंकार पोषण, लोकेषरणा, संग्रह, धन व पद का दुरुपयोग आदि में बहुत कुशाग्र होती है। उससे संघर्ष करना समाजोपयोगी होते हुए भी मानसिक तनाव को उत्पन्न करता है क्योंकि उन प्रवृत्तियों के विरोध करने वाले व्यक्ति को अपनी मानसिक शक्ति संघर्ष की अोर केन्द्रित करनी पड़ती है। यह घोर तनाव की स्थिति है। यह तनाव उस समय बढ़ जाता है जब समाज या राज्य उसमें सहयोग नहीं देता है । बहुत सी अशुभ प्रवृत्तियाँ कानूनी सबूत के
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