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व उनको दूर करने के उपायों पर विचार करना धर्म-ध्यान कहा गया है (४०) । व्यक्ति कितना ही साधन सम्पन्न क्यों न हो, किन्तु वह व्यक्तिगत स्तर पर नाना प्रकार के दुःखों को दूर करने का बहत ही सीमित प्रयास कर सकता है । यह प्रयास भी. करुणा की तीव्रता और दुःखों के परिमाण के अनुपात में व्यक्तिगत साधनों के न होने से मानसिक तनाव का कारण बनता है । इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति या तो निराश होकर प्रयास छोड़ देता है या फिर सामाजिक संस्थाओं या राज्य को माध्यम बनाने की ओर मुड़ता है। आखिर समाज में शुभ कार्य सामूहिक प्रयास से ही संभव बनते हैं। सामूहिक प्रयास व्यक्ति के लिए नये तनाव उत्पन्न कर देते हैं । साधनों का दुरुपयोग, धन का अपव्यय, लोकेषणा का जागरण, पद-लिप्सा, आपसी मन-मुटाव, पद का दुरुपयोग, व्यक्तिगत स्वार्थों की पूर्ति, गबन आदि अशुभ क्रियायें करुणा से प्रेरित व्यक्ति के लिए अत्यधिक मानसिक तनाव उत्पन्न करती हैं, क्योंकि सामूहिक प्रयासों में दुःखों को दूर करने की क्रियायें शिथिल होने के कारण उस व्यक्ति में कुण्ठा उत्पन्न होती है। यदि मान भी लिया जाए कि सामाजिक संस्थाएँ तथा राज्यों का कार्य उचित प्रकार से चल रहा है तो भी दु:खों का विस्तार और साधनों की सीमा को देखते हुए करुणा से प्रेरित व्यक्ति सदैव अपने उद्देश्य की प्राप्ति में पिछड़ा रहेगा और उसे उन लोगों पर आश्रित होना पड़ेगा जिनकी संवेदनशीलता उसके समान नहीं है। यह भी उसके लिए असहनीय होगा और वह मानसिक तनाव से मुक्त नहीं रहेगा । यहाँ यह स्मरण रखना चाहिए कि सभी सामाजिक दायित्वों में शुभ भावों से प्रेरित व्यक्ति की स्थिति एक या दूसरे कारण से तनाव पूर्ण रहती है। ___(iii) अशुभ प्रवृत्ति के सुधारात्मक विरोध का भाव शुभ
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[अष्टपाहुड
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