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यदि उनकी जीवन-चर्या कानून, नैतिकता और न्याय के अनुरूप नहीं है तो वे गुणी की कोटि में नहीं रखे जा सकते हैं । ठीक ही कहा है : व्याकरण, छंद, प्रशासन, न्याय-शास्त्र तथा प्रागमों के जानकार के लिए भी शील (चारित्र) ही उत्तम कहा गया है (६६)। जीव-दया, इन्द्रिय-संयम, सत्य, अचौर्य प्रादि शील के ही परिवार हैं (१००) । जो व्यक्ति ज्ञान प्राप्त करके भी विषयों में प्रासक्त होते हैं. इसमें दोष ज्ञान का नहीं हैं, किन्तु वह दोष उन दुष्ट पुरुषों की मंद बुद्धि का ही है (९८)। ज्ञान और शील में कोई विरोध नहीं है (६७)। यदि शील नहीं है तो ज्ञान भी धीरे धीरे नष्ट हो जाता है (९७) । प्रतः शील (चारित्र) ही पूज्य है। यदि हम गहराई से विचार करें तो गुरिणयों के प्रति अनुराग विभिन्न स्तरों पर मानसिक तनाव पैदा करता है। गुरिणयों की खोज करना, गुणी का निश्चय करना; गुणी का कभी कभी दुर्गुणी में बदल जाने का भय होना, गुणी से प्राशाओं की पूर्ति की इच्छा करना, गुणी का गुणानुकरण करने का भाव आदि मानसिक तनाव पैदा करने वाली स्थितियां हैं। इनसे सामान्यतया नहीं बचा जा सकता है। किन्तु यह मानसिक तनाव दुष्टों के प्रति अनुराग से उत्पन्न मानसिक तनाव से भिन्न प्रकृति का है।
. (i) जीवन में नाना प्रकार के दुःख हैं। भूख-प्यास, शारीरिक रोग, मानसिक रोग, बुढ़ापा, अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी तूफान, बाढ़, भूकम्प प्रादि बहुत से दुःख व्यक्ति को परेशान करते हैं । दहेज, बाल-विवाह, आणविक युद्ध का भय, अन्तर्राष्ट्रीय तनाव, भष्टाचार प्रादि सामाजिक बुराइयां व्यक्ति के दुःख का कारण बनती हैं । करुणा के संवेग से प्रेरित होकर दु:खियों के दुःख को दूर करने की इच्छा का उदय शुभ भाव है । चिन्तनात्मक बुद्धि इस दिशा में सक्रिय होकर मार्ग-दर्शन करती है । दुःखों के कारण
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