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________________ अनुरूप जीवन को ढालना आदि उपायों से व्यक्ति अपने में शुभ संवेगों का संचार' कर सकता है। (ii) कई व्यक्ति भौतिक सुखसुविधा में जीने को ही श्रेय मानते हैं। अल्प. सुखात्मक जीवन ही उन्हें प्राकर्षित करता रहता है । वे अपना समय और धन अपने लिए सुख-जनक वस्तुओं को जुटाने में ही व्यतीत करते हैं । ऐसे व्यक्तियों को समाज-कल्याण की क्रियाओं के लिए प्रेरित किया जा सकता है जिससे वे आवश्यक सुविधाओं को रखकर बाकी सब समाज को अर्पित कर दें। उनको समझाया जा सकता है कि सुविधाएँ शान्ति के लिए आवश्यक तो हैं पर वे शांति प्रदान नहीं कर सकती हैं । परार्थ का जीवन जीना ही शान्ति को निकट लाना है। इस तरह से अल्प सुखात्मक वस्तुओं में अनासक्त व्यक्ति शुभ भावों के विभिन्न आयामों में जीने की योजना बना सकता है। शुभ भाव और मानसिक तनाव व्यक्ति में शुभ भावों का उदय होने पर उसमें लोकोपकारी इच्छात्रों का जन्म होता है और चिन्तनात्मक बुद्धि उनको साकार करने में तत्पर हो जाती है। इस तरह से व्यक्ति परार्थ की भोर अभिमुख हो जाता है। (i) गुणियों के प्रति अनुराग ऐसे व्यक्ति के लिए स्वाभाविक होता है । वह व्यक्ति जिसकी जीवन-चर्या कानून, नैतिकता और न्याय के अनुरूप होती है, एक अर्थ में गुणी है। यहाँ पर ध्यान देना चाहिए कि व्यक्तिगत चर्या और सामाजिक कर्तव्य पालन दोनों मिलकर ही व्यक्ति में गुणों का कारण बनते हैं । कई व्यक्तियों के सामाजिक कर्तव्यों में ज्ञानात्मक और प्रशासनात्मक कार्य का प्राधान्य होता है और उनका ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में तथा लोक जीवन के सन्दर्भ में उपयोगी योगदान भी हो सकता है, किन्तु xii ] . [ अष्टपाहुड Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004161
Book TitleAshtapahud Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1998
Total Pages106
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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