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जिन लोगों को आर्थिक सुलभता के कारण वस्तुएँ तुरन्त प्राप्त हो भी जाती हैं, तो वस्तुओं के प्रकारों में परिवर्तनशीलता की गति के अनुरूप वस्तुओं की प्राप्ति की गति नहीं हो पाती है, जिससे उन लोगों में भी कुण्ठा और उसके परिणामस्वरूप मानसिक तनाव पैदा होता है । कई बार जीवन-स्तर व्यक्तियों में होड़ का कारण बन जाता है । यह भी तनाव-पूर्ण स्थिति है।
अशुभ भाव से शुभ भाव की ओरः
जो कुछ कहा गया है उससे यह स्पष्ट है कि अशुभ भाव वैयक्तिक एवं सामाजिक दोनों दृष्टिकोण से घातक होते हैं और वे व्यक्ति में घोर मानसिक तनाव उत्पन्न करते हैं । (i) अशुभ भावों से उत्पन्न क्रियाएं जो कानुन, नैतिकता और न्याय के विरुद्ध होती हैं उन्हें पूर्णतया त्याग देना चाहिए । अतः इसके लिए अशुभ भावों को समाप्त किया जाना आवश्यक है जिससे इनका स्थान शुभ भाव तथा उनसे उत्पन्न क्रियाएँ ले सकें। (ii) कूछ घटनाएँ-जैसे इष्ट का वियोग, अनिष्ट का संयोग, जटिल रोगों का आक्रमण प्रादि-व्यक्ति के जीवन में ऐसी घटित होती हैं जो उसमें दुःखात्मक संवेगों को पैदा कर उसको चिन्ताग्रस्त बना देती हैं। वह भय, शोक, क्रोध, निराशा आदि संवेगों से आक्रान्त हो जाता है। चूंकि ये घटनाएँ व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध घटित होती हैं इसलिए व्यक्ति दुःखी और चिन्ताग्रस्त होने के साथ साथ व्यक्तित्व के विकास के लिए हानिकारक संवेगों से घिर जाता है, जो उसमें मानसिक तनाव उत्पन्न करते हैं। ऐसे व्यक्ति को यदि धैर्य, साहस आदि का प्रशिक्षण दिया जाए तो उसमें तनाव-सहनशीलता की वृद्धि हो सकती है।
और वह शुभ संवगों को अपनाने में सफल हो सकता है । सामाजिक सहयोग, समस्या का उचित मूल्यांकन, ज्ञान-वृद्धि, परिस्थिति के
चयनिका ]
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