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74. सुद्धस्स य सामण्णं भणियं सुद्धस्स दंसणं णाणं।'
सुद्धस्स य णिव्वाणं सो च्चिय सिद्धो णमो तस्स।।
सुद्धस्स
सामण्णं भणियं सुद्धस्स दंसणं णाणं सुद्धस्स
(सुद्ध) 4/1 वि अव्यय (सामण्ण) 1/1 (भण) भूक 1/1 (सुद्ध) 4/1 (दसण) 1/1 (ज्ञान) 1/1 (सुद्ध) 4/1 वि
अव्यय (णिव्वाण) 1/1 (त) 1/1 सवि अव्यय (सिद्ध) 1/1 अव्यय (त) 4/1 सवि
शुद्धोपयोगी के लिए और श्रमणता कही गई शुद्धोपयोगी के लिए दर्शन ज्ञान शुद्धोपयोगी के लिए तथा
मोक्ष
णिव्वाणं सो च्चिय
.
णमो तस्स
सिद्ध नमस्कार उनके लिए
अन्वय- सुद्धस्स सामण्णं भणियं य सुद्धस्स णाणं दंसणं य सुद्धस्स णिव्वाणं सो चिय सिद्धो तस्स णमो।
अर्थ- शुद्धोपयोगी के लिए (पूर्ण) श्रमणता कही गई (है) और शुद्धोपयोगी के लिए ज्ञान -दर्शन (कहा गया है) तथा शुद्धोपयोगी के लिए मोक्ष (भी) (कहा गया है)। वह ही सिद्ध (है) (अतः) उनको नमस्कार!
1.
णमो' के योग में चतुर्थी होती है।
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प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार