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________________ 75. बुज्झदि सासणमेयं सागारणगारचरियया जुत्तो। जो सो पवयणसारं लहुणा कालेण पप्पोदि।। बुज्झदि . (बुज्झ) व 3/1 सक समझता है सासणमेयं [(सासणं)+(एयं)] सासणं (सासण) 2/1-7/1 जिन-शासन में एयं (एय) 2/1 सवि इसको सागारणगारचरियया' [(सागार)+ (अणगार)+ (चरियया)] [(सागार)वि-(अणगार)वि- श्रावक और श्रमण की (चरियया) 2/277/2] चारित्रताओं में (जुत्त) भूकृ 1/1 अनि स्थिर (ज) 1/1 सवि (त) 1/1 सवि वह पवयणसारं (पवयणसार) 2/1 प्रवचनसार को लहुणा' (लहु) 3/1-7/1 वि अल्प कालेण (काल) 3/1+7/1 काल में पप्पोदि - (पप्पोदि) व 3/1 सक अनि प्राप्त करता है E अन्वय- जो सागारणगारचरियया जुत्तो सासणमेयं बुज्झदि सो पवयणसारं लहुणा कालेण पप्पोदि। अर्थ- जो श्रावक और श्रमण की चारित्रताओं में (व्रत आचरण में) स्थिर (है) (जो) जिन-शासन में इस (बात/महत्त्व) को समझता है वह प्रवचनसार को अल्प काल में प्राप्त करता है। 1. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया/तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-137) प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार (85)
SR No.004160
Book TitlePravachansara Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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