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71. जे अजधागहिदत्था एदे तच्च त्ति णिच्छिदा समये।
अच्चंतफलसमिद्धं भमंति ते तो. परं कालं।।
पदार्थ
(ज) 1/2 सवि अजधागहिदत्था [(अजधागहिद)+(अत्था)]
[(अजधा) अ-(गहिद) संकृ- अनुपयुक्त रूप से (अत्थ) 2/2]
पदार्थों को स्वीकार
करके (एत) 1/2 सवि तच्च त्ति [(तच्चा)+ (इति)]
तच्चा (तच्च) 1/2
इति (अ) = इस प्रकार ही इस प्रकार ही णिच्छिदा
- (णिच्छिद) भूकृ 1/2 अनि । निर्धारित किये गये समये (समय) 7/1
जिन-सिद्धान्त में अच्वंतफलसमिद्धं [(अच्चंत) वि-(फल)- अत्यन्त (दुखरूप)फल
(समिद्ध)भूक 2/177/2 अनि] से भरे हुए (संसार) में भमंति
(भम) व 3/2 सक परिभ्रमण करते हैं (त) 1/2 सवि अव्यय (पर) 2/1 वि
अनन्त (काल) 2/1
काल तक
अन्वय-जे अजधागहिदत्था एदे तच्च त्ति समये णिच्छिदा तो ते अच्चंतफलसमिद्धं परं कालं भमंति।
अर्थ- जो पदार्थों को अनुपयुक्त रूप से स्वीकार करके (कहता है) (कि) ये पदार्थ जिन-सिद्धान्त में इस प्रकार ही निर्धारित किये गये हैं) तो वे अत्यन्त(दुखरूप) फल से भरे हुए(संसार) में अनन्त काल तक परिभ्रमण करते हैं। 1. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है।
(हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-137) यहाँ परं' द्वितीया विभक्ति में रखा गया है तथा 'कालं' भी द्वितीया विभक्ति में है। (यह प्रयोग उस समय होता है जब निरन्तरता हो समाप्ति नहीं)। (प्राकृत-व्याकरणः पृष्ठ 33)
प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार
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