________________
70. तम्हा समं गुणादो समणो समणं गुणेहिं वा अहियं।
अधिवसदु तम्हि णिच्चं इच्छदि जदि दुक्खपरिमोखं।।
तम्हा
समं
गुणादो समणो समणं
श्रमण
गुणेहि
अहियं अधिवसदु तम्हि णिच्चं इच्छदि
अव्यय
इसलिए अव्यय
एकसमान (गुण) 5/2
गुणों से (समण) 1/1
श्रमण (समण) 2/1-1/1 (गुण) 3/2-5/2 गुणों से अव्यय
अथवा अव्यय
ज्यादा (अधिवस) विधि 3/1 अक रहे। (त) 7/1 सवि
वहाँ पर अव्यय
सदैव (इच्छ) व 3/1 सक चाहता है अव्यय (दुक्ख)-(परिमोक्ख) 2/1] दुखों से मुक्ति
जदि
यदि
दुक्खपरिमोक्खं
अन्वय- तम्हा जदि समणो दुक्खपरिमोक्खं इच्छदि णिच्वं गुणादो समं वा गुणेहिं अहियं समणं तम्हि अधिवसदु।
अर्थ- इसलिए यदि श्रमण दुखों से मुक्ति चाहता है (तो) (वह) सदैव (अपने) गुणों से एकसमान अथवा (अपने) गुणों से ज्यादा (गुणवाला) श्रमण (जहाँ रहता है) वहाँ पर (ही) रहे।
1.
जिससे किसी वस्तु या व्यक्ति की तुलना की जाए, उसमें पंचमी होती है। (प्राकृत-व्याकरणः पृष्ठ 44) प्रथमा विभक्ति के स्थान पर कभी-कभी द्वितीया विभक्ति होती है। (प्राकृत-व्याकरणः पृष्ठ 32) पंचमी विभक्ति के स्थान पर कभी-कभी तृतीया विभक्ति होती है। (प्राकृत-व्याकरणः पृष्ठ 44) संपादक द्वारा अनूदित
नोटः
(80)
प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार