SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 69. णिग्गंथो पव्वइदो वट्टदि जदि एहिगेहि कम्मेहि। सो लोगिगो त्ति भणिदो संजमतवसंजुदो चावि।। श्रमण णिग्गंथो पव्वइदो वट्टदि (णिग्गंथ) 1/1 (पव्वइद) 1/1 वि (वट्ट) व 3/1 सक अव्यय (एहिग) 3/2-7/2 वि दीक्षा ग्रहण किया हुआ प्रवृत्ति करता है जदि यदि 1144! 1.6 एहिगेहि इस लोक संबंधी/ सांसारिक क्रियाओं में वह कम्मेहिं 'लोगिगो त्ति (कम्म) 3/2-7/2 (त) 1/1 सवि [(लोगिगो)+ (इति)] लोगिगो (लोगिग) 1/1 वि इति (अ) = (भण) भूक 1/1 [(संजम)-(तव)(संजुद) भूकृ 1/1 अनि] अव्यय भणिदो संजमतवसंजुदो लौकिक शब्दस्वरूपद्योतक कहा गया आत्मनियंत्रण और तप से युक्त यद्यपि चावि . . अन्वय- पव्वइदो णिग्गंथो जदि एहिगेहि कम्मेहिं वट्टदि सो लोगिगो त्ति भणिदो चावि संजमतवसंजुदो। ___ अर्थ- दीक्षा ग्रहण किया हुआ श्रमण यदि इस लोक संबंधी/सांसारिक क्रियाओं में प्रवृत्ति करता है (तो) वह लौकिक कहा गया है यद्यपि (वह) आत्मनियंत्रण और तप से युक्त (होता है)। प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार (79)
SR No.004160
Book TitlePravachansara Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy