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________________ 67. अधिगगुणा सामण्णे वट्टेति गुणाधरेहिं किरियासु । जदि ते मिच्छुवजुत्ता हवंति पब्भट्टचारित्ता ।। अधिगगुणा सामण्णे व ंति गुणाधरेहिं किरिया दि ते मिच्छुवजुत्ता हवंति पब्भट्ठचारित्ता {[(अधिग) वि-(गुण) 1 /2] वि} ( सामण्ण) 7/1 (वट्ट) व 3/2 सक [ ( गुण) - (अधर) 3 / 2 वि] (fanften) 7/2 अव्यय (त) 1/2 सवि (मिच्छुवत्त) 1/2 वि (हव) व 3/2 अक {[(पब्भट्ठ) वि-(चारित) 1/2] fa} विशिष्ट गुणवाले श्रमणता में प्रवृत्ति हैं गुणहीनों के साथ चर्या में यदि प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र - अधिकार वे अश्रद्धा से युक्त होते हैं हीन चारित्र वाले अन्वय- जदि सामण्णे अधिगगुणा गुणाधरेहिं किरियासु वट्टेति ते मिच्छुवजुत्ता पब्भट्टचारित्ता हवंति । अर्थ - यदि श्रमणता में विशिष्ट गुणवाले (साधु) गुणहीणों के साथ ( श्रमण) चर्या में प्रवृत्ति करते हैं (तो) वे (जिनशासन में) अश्रद्धा से युक्त हीन चारित्र वाले होते हैं। (77)
SR No.004160
Book TitlePravachansara Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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