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61. ट्ठिा पगदं वत्थु अब्भुट्टाणप्पधाणकिरियाहिं।
वट्टदु तदो गुणादो विसेसिदव्यो त्ति उवदेसो।।
वत्थु
वा
इसलिए
(दिट्ठा) संकृ अनि देखकर पगदं (पगद) 2/1 वि प्राकृतिक (वत्थु) 2/1
अवस्था को अब्भुट्टाणप्पधाण- [(अब्भुट्ठाण)-(प्पधाण) वि- सम्मान के लिए खड़े किरियाहिं (किरिया) 3/2] होना आदि प्रधान
क्रियाओं से (वट्ट) विधि 3/1 सक आदर करो
अव्यय गुणादो (गुण) 5/2
गुणों के कारण विसेसिदव्वो त्ति [(विसेसिदव्वो)+(इति)]
विसेसिदव्वो (विसेस) विशेष किया जाना विधिकृ 1/1
इति (अ) = ऐसा ऐसा उवदेसो (उवदेस) 1/1 उपदेश
अन्वय- उवदेसो गुणादो विसेसिदव्वो त्ति तदो पगदं वत्थु दिट्ठा अब्मुट्ठाणप्पधाणकिरियाहिं वट्टदु। ____ अर्थ- ऐसा उपदेश हैः (विद्यमान) गुणों के कारण विशेष (व्यवहार) किया जाना चाहिये, इसलिए (श्रमण की) प्राकृतिक अवस्था (यथाजातरूप) को देखकर सम्मान के लिए खड़े होना आदि प्रधान क्रियाओं से (उनका) आदर करो।
चाहिए
प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार
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