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60. असुभोवयोगरहिदा सुद्धवजुत्ता सुहोवजुत्ता वा।
णित्थारयंति लोग तेसु पसत्थं लहदि भत्तो।।
असुभोवयोगरहिदा [(असुभ) + (उवयोगरहिदा)] अशुभ उपयोग से
[(असुभ) वि-(उवयोग)- मुक्त
(रहिद) भूकृ 1/2 अनि] सुद्धवजुत्ता [(सुद्ध)+ (उवजुत्ता)] शुद्ध में संलग्न
[(सुद्ध)-(उवजुत्त)
भूकृ 1/2 अनि सुहोवजुत्ता [(सुद्ध)+(उवजुत्ता)] शुभ में संलग्न
[(सुह)-(उवजुत्त) भूकृ 1/2 अनि] अव्यय
अथवा णित्थारयंति (णित्थारय) व 3/2 सक
पार उतारते हैं 'य' विकरण (लोग) 2/1
मनुष्य-समूह को (त) 7/2 सवि
उनमें पसत्थं (पसत्थ) 2/1 वि
सर्वोत्तम लहदि (लह) व 3/1 सक प्राप्त करता है भत्तो
(भत्त) भूकृ 1/1 अनि श्रद्धालु/अनुरक्त
लोगं
अन्वय- असुभोवयोगरहिदा सुद्धवजुत्ता वा सुहोवजुत्ता लोगं णित्थारयंति तेस भत्तो पसत्थं लहदि । - अर्थ- अशुभ उपयोग से मुक्त (श्रमण) (जो) शुद्ध में संलग्न अथवा शुभ में संलग्न (हैं) (वे) मनुष्य-समूह को (संसार रूपी सागर से) पार उतारते हैं। उन (श्रमणों) में (जो) श्रद्धालु/अनुरक्त (है) (वह) सर्वोत्तम (अवस्था) को प्राप्त करता है।
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प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार