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________________ 59. उवरदपावो पुरिसो समभावो धम्मिगेसु सव्वेसु। गुणसमिदिदोवसेवी हवदि स भागी सुमग्गस्स।। उवरदपावो (उवरदपाव) 1/1 वि पाप से रहित पुरिसो (पुरिस) 1/1 पुरुष समभावो । (समभाव) 1/1 वि एकसा भाव रखनेवाला धम्मिगेसु (धम्मिग) 7/2 वि धर्मवत्सलों में सव्वेसु (सव्व) 7/2 सवि सभी गुणसमिदिदोवसेवी [(गुणसमिदिदो)+ (अव) + (सेवी)] [(गुण)-(समिदि)' 5/1] गुण-समूह के कारण अव (अ) = निरर्थक प्रयोग सेवी (सेवि) 1/1 वि अभ्यासी (हव) व 3/1 अक होता है (त) 1/1 सवि वह भागी (भागि) 1/1 वि भागीदार/भाजन सुमग्गस्स (सुमग्ग) 6/1 श्रेष्ठ मार्ग का अन्वय- पुरिसो उवरदपावो सव्वेसु धम्मिगेसु समभावो गुणसमिदिदोवसेवी सुमग्गस्स स भागी हवदि। अर्थ- (जो) पुरुष पाप से रहित (है), सभी धर्मवत्सलों में एकसा भाव रखनेवाला (है) (तथा) (जो) (धारण किये हुए) गुण-समूह के कारण श्रेष्ठ मार्ग का अभ्यासी (है) वह (मोक्ष का) भागीदार/भाजन है। 1. 2. यहाँ छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु समिदी' का समिदि' किया गया है। यहाँ अव' अव्यय का निरर्थक प्रयोग हुआ है। प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार (69)
SR No.004160
Book TitlePravachansara Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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