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________________ 58. जदि ते विससाया पावत्ति रूविदा व सत्थेसु किह जदि ते विसयकसाया पाव त्ति परूविदा व सत्थेसु । किह ते तप्पडिबद्धा पुरिसा णित्थारगा होंति ।। तप्पडिबद्धा पुरिसा णित्थारगा होंति' 1. (68) अव्यय (त) 1/2 सवि [ ( विसय) - ( कसाय) 1/2] [ ( पावा) + (इति)] पावा (पाव) 1/2 इति (अ) = (परूव) भूक 1/2 अव्यय ( सत्थ) 7/2 अव्यय (त) 1/2 सवि [(त) सवि - ( प्पडिबद्ध) भूक 1/2 अनि ] (पुरिस) 1/2 ( णित्थारग) 1/2 वि (हो) व 3/2 अक अगर वे विषय - कषायें पाप शब्दस्वरूपद्योतक कही गई पादपूरक शास्त्रों में कैसे वे उनसे बँधे हुए अन्वय- जदि ते विसयकसाया सत्थेसु पाव त्ति परूविदा तप्पडिबद्धा व ते पुरिसा किह णित्थारगा होंति । अर्थ - अगर वे (प्रख्यात) विषय - कषायें शास्त्रों में पाप कही गई हैं (तो) उन (विषय- कषायों) से बँधे हुए वे पुरुष (आवागमनात्मक संसार से ) कैसे तारनेवाले होंगे? प्रश्नवाचक शब्दों के साथ वर्तमानकाल का प्रयोग प्रायः भविष्यत्काल के अर्थ में होता है। पुरुष तारनेवाले होते हैं प्रवचनसार ( खण्ड - 3) चारित्र अधिकार -
SR No.004160
Book TitlePravachansara Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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