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56. छदुमत्थविहिदवत्थुसु वदणियमज्झयणझाणदाणरदो । ण लहदि अपुणब्भावं भावं सादप्पगं लहदि । ।
छदुमत्थविहिद
वत्थुसु
( वत्थु ) 7/2-3/2]
वदणियमज्झयण- [ ( वदणियम ) + (अज्झयण
झाणदाणरदो'
ण
लहदि
अपुणब्भावं
भावं
सादप्पगं
लहदि
[(छदुमत्थ) वि(विहिद) भूक अनि
1.
(66)
झाणदाणरद)]
[(वद) - (णियम ) - (अज्झयण ) - व्रत, नियम, अध्ययन
ध्यान और दान में
संलग्न
नहीं
(झाण) - (दाण) - (रद )
भूक 1 / 1 अनि ]
अव्यय
(लह) व 3 / 1 सक
( अपुणब्भाव ) 2 / 1
अल्पज्ञानियों द्वारा
स्थिर की हुई
योजना के कारण
अन्वय - छदुमत्थविहिदवत्थुसु वदणियमज्झयणझाणदाणरदो अपुणभावं ण लहदि सादप्पगं भावं लहदि ।
अर्थ- अल्पज्ञानियों द्वारा स्थिर की हुई योजना के कारण (जो ) व्रत, नियम, अध्ययन, ध्यान और दान में संलग्न ( है ) ( वह) मोक्ष को प्राप्त नहीं करता ( है ) (किन्तु ) ( सांसारिक) सुखात्मक अवस्था को प्राप्त करता है ।
प्राप्त करता है
मोक्ष को
(भाव) 2 / 1
अवस्था को
[ ( साद) - (अप्पग) 2 / 1 वि] सुखात्मक
(लह) व 3 / 1 सक
प्राप्त करता है
संधि नियम 8.1 (प्राकृत - व्याकरण, पृष्ठ 8 )
प्रवचनसार (खण्ड- 3) चारित्र - अधिकार.