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55. रागो पसत्थभूदो वत्थुविसेसेण फलदि विवरीदं।
णाणाभूमिगदाणिह बीजाणिव सस्सकालम्हि।।
.
(राग)
राग .
प्रशंसनीय हुआ
पदार्थ भेद के कारण फल उत्पन्न करता है
फलदि
विपरीत
रागो (राग) 1/1 पसत्थभूदो [(पसत्थ) वि-(भूद)
भूक 1/1] वत्थुविसेसेण [(वत्थु)-(विसेस) 3/1]
(फल) व 3/1 सक विवरीदं (विवरीद) 2/1 वि णाणाभूमिगदाणिह [(णाणाभूमिगदाणि)-(ह)]
[(णाणा) वि-(भूमि)(गद) भूकृ 1/2 अनि]
ह (अ) = बीजाणिव [(बीजाणि)-(व)]
(बीज) 1/2
व (अ) = जैसे कि सस्सकालम्हि [(सस्स)-(काल) 7/1]
नाना प्रकार की भूमि में बोये गये पादपूरक
बीज जैसे कि खेती के समय में
अन्वय- रागो पसत्थभूदो वत्थुविसेसेण विवरीदं फलदि बीजाणिव सस्सकालम्हि णाणाभूमिगदाणिह।
अर्थ- (यद्यपि) (शुभोपयोगी) राग प्रशंसनीय हुआ (है), (तो भी) पदार्थ भेद के कारण (राग) विपरीत फल (भी) (उसी प्रकार) उत्पन्न करता है जैसे कि बीज (जो) खेती के समय में नाना प्रकार की (उपजाऊ-अनुपजाऊ) भूमि में बोये गये (हैं) (और) (फल को उत्पन्न करते हैं।)
नोटः
संपादक द्वारा अनूदित
प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार
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