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________________ 54. एसा पसत्थभूदा समणाणं वा पुणो घरत्थाणं। चरिया परेत्ति भणिदा ताएव परं लहदि सोक्खं।। यह एसा पसत्थभूदा प्रशंसनीय हुई/बनी समणाणं श्रमणों के लिए पादपूरक वा पुणो और घरत्थाणं चरिया परेत्ति गृहस्थों के लिए चर्या (एता) 1/1 सवि [(पसत्थ) वि-(भूदा) भूकृ 1/1] (समण) 4/2 अव्यय अव्यय (घरत्थ) 4/2 (चरिया) 1/1 [(परा)+ (इति)] परा (परा) 1/1 वि इति (अ) = क्योंकि (भण) भूकृ 1/1 ता (अ) = उससे एव (अ) = ही (पर) 2/1 वि (लह) व 3/1 सक (सोक्ख) 2/1 भणिदा ताएव उत्कृष्ट क्योंकि कही गई उससे ही उत्कृष्ट प्राप्त करता है लहदि सोक्खं सुख को अन्वय- समणाणं एसा चरिया पसत्थभूदा वा पुणो घरत्थाणं परेत्ति भणिदा ताएव परं सोक्खं लहदि। अर्थ- श्रमणों के लिए यह (शुभोपयोगी) चर्या प्रशंसनीय हुई/बनी (है) और गृहस्थों के लिए (यह शुभोपयोगी चर्या) उत्कृष्ट कही गई (है) क्योंकि (गृहस्थ) उससे (उस चर्या से) ही उत्कृष्ट सुख को प्राप्त करता है। (64) प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार
SR No.004160
Book TitlePravachansara Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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