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________________ 45. समणा सुद्धवजुत्ता सुहोवजुत्ता य होंति समयम्हि। तेसु वि सुद्धवजुत्ता अणासवा सासवा सेसा।। समणा श्रमण सुद्धवजुत्ता शुद्ध में संलग्न सुहोवजुत्ता शुभ में संलग्न होति (समण) 1/2 [(सुद्ध)+ (उवजुत्ता)] [(सुद्ध) वि-(उवजुत्त) भूकृ 1/2 अनि] [(सुह)+ (उवजुत्ता)] [(सुह) वि-(उवजुत्त) भूकृ 1/2 अनि] अव्यय (हो) व 3/2 अक (समय) 7/1 (त) 7/2 सवि अव्यय [(सुद्ध)+ (उवजुत्ता)] [(सुद्ध) वि-(उवजुत्त) भूक 1/2 अनि] (अणासव) 1/2 वि (सासव) 1/2 वि (सेस) 1/2 वि और होते हैं आगम में उनमें समयम्हि भी सुद्धवजुत्ता शुद्ध में संलग्न अणासवा सासवा सेसा कर्मास्रव-रहित कर्मास्रव-सहित बाकी अन्वय- समयम्हि समणा होंति सुद्धवजुत्ता य सुहोवजुत्ता तेसु वि सुद्धवजुत्ता अणासवा सेसा सासवा। ___अर्थ- आगम में श्रमण (दो प्रकार के) होते हैं- शुद्ध में संलग्न अर्थात् शुद्धोपयोगी और शुभ में संलग्न अर्थात् शुभोपयोगी। उनमें भी (जो) (श्रमण) शुद्ध में संलग्न अर्थात् शुद्धोपयोगी (हैं) (वे) कर्मास्रव-रहित (होते हैं) (तथा) बाकी (जो श्रमण शुभ में संलग्न अर्थात् शुभोपयोगी हैं)(वे)कर्मास्रव-सहित(होते हैं)। प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार (55)
SR No.004160
Book TitlePravachansara Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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